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________________ PPAC Gunrahasun MS, आप तो मुनिवर के वचनों को सत्य बतलाती हैं, पर किसी अन्य नृपति के संग मेरा वाग्दान हो चुका है। तब | मुनिवर के कथन की पुष्टि आप ने किस आधार पर कर दी, यह मुझे समझ में नहीं आया।' उसकी विदुषी बुआ ने स्पष्ट किया- 'हे पुत्री ! मैं जो कहती हूँ, उसे ध्यान देकर सुनो'-कुछ काल पूर्व (पहिले) शास्त्रों में पारङ्गत मतियुक्त नाम के एक मुनिराज हमारे यहाँ आहार के निमित्त पधारे थे। तेरे पिता (स्वयं मेरे भ्राता महाराज भीष्म ने नवधा-भक्ति से उन्हें आहार-दान दिया। तत्पश्चात् जब वे आसन पर विराजे,वो तेरा अनुपम लावण्य देख कर मुनिराज ने महाराज से जिज्ञासा को कि यह किसकी पुत्री है? तब महाराज ने स्पष्ट किया कि उनकी ही पुत्री है। कौतूहलवश महाराज ने नम्रतापूर्वक प्रश्न किया कि कृपा कर यह बतलाइये कि यह कन्या किसका वरण करेगी अथवा किसे समर्पित कर मैं सुखी होऊँगा? तब मुनिवर ने उत्तर दिया'हे राजन् ! तुम्हारी यह पुत्री बड़ी माग्यवती है / यदुकुल के सूर्य जो पृथ्वी पर उपेन्द्र अर्थात् नारायण के नाम से विख्यात हैं, जिनकी कीर्ति-सम्पदा अतुलनीय है तथा जो दैत्यों के विनाशक हैं, वे ही तम्हारी इस पत्री के स्वामी होंगे।' ऐसा कह कर उन मुनिराज ने तपस्या के लिए वन की ओर गमन किया। मैं ने वह वार्तालाप निकट से सुना था। मुनिराज के वचन कभी मिथ्या नहीं होते, क्योंकि यह निश्चित है कि मुनिगण कमी असत्य सम्भाषण नहीं करते।' फिर भी रुक्मिणो ने जिज्ञासा की-'हे बुआ ! जब ऐसो होनहार है, तब राजा शिशुपाल को क्यों वचन दिया गया ?' उसकी बुजा ने उत्तर दिया-'हे बेटी! दुःखी मत हो। तेरे माता-पिता ने यह वचन नहीं दिया है। तेरा भ्राता सूप्यकुमार किसी कार्यवश शिशुपाल के यहाँ गया था। उसके मातिथ्य से सन्तुष्ट हो कर उसने तेरे विवाह की स्वीकृति दी है।' किन्तु यह अद्भुत वृत्तान्त सुन कर महाराज श्रेणिक को गहरा सन्देह हुषा। उन्होंने गणधर गौतम स्वामी से प्रश्न किया-'हे नाथ ! रूप्यकुमार किस कार्य हेतु शिशुपाल के यहाँ गया था ?' तब गौतम स्वामी ने / स्पष्ट किया-'एक बार शिशुपाल शत्रुओं पर आक्रमण के प्रयत्न में था। उसने भीष्म के पास दूत भेज कर / प्रार्थना की थी कि वे अपनी सेना के संग उसे सहयोग प्रदान करें।' दूत का सन्देश सुन कर मित्र की सहायता हेतु भीष्म अपनी सेना को संगठित कर स्वयं गमन हेतु प्रस्तुत हुए। उन्होंने अपनी अनुपस्थिति में राज्य Jun Gun Aardak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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