________________ | वर्णन सुन कर देवों का अधिपति वह इन्द्र कहने लगा- 'हे भगवन् ! कृपया यह भी बतलाने की कृपा करें / कि मेरे अग्रज मधु का जीव अब कहाँ है ?' तब भगवान सीमन्धर स्वामी ने बतलाया कि इस समय वह द्वारिका में नारायण श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणो के गर्भ से उत्पन्न हुआ है एवं उसका नाम प्रद्युम्न है। उसके ||265 यह जिज्ञासा करने पर कि उसका मेरा पुनर्मिलन होगा अथवा नहीं ? भगवान ने कहा-'अवश्य होगा। शीघ्र ही तुम भी श्रीकृष्ण के पुत्र होगे।' श्री जिनेन्द्र देव की वाणी सुन कर देवराज प्रसन्नतापूर्वक द्वारिका नगरी को चल पड़ा। द्वारिका में पहुँच कर वह नारायण श्रीकृष्ण की सभा में गया। उसने भक्तिपूर्वक नमस्कार कर उनसे सब वृत्तान्त कह सुनाया एवं निवेदन किया- 'हे प्रभो! आप अमुक पक्ष एवं अमुक रात्रि को महारानी के साथ शयन कीजियेगा।' तत्पश्चात् उसने सूर्य-सा जाज्वल्यमान मणियों का एक हार भेंट में देते हुए श्रीकृष्ण से कहा-'यह हार मनुष्यों के लिए सर्वथा दुर्लभ है, इसे मेरी भावी माता को उसी समय दीजियेगा।' इतना कह कर वह विमान में आरूढ़ होकर प्रस्थान कर गया। उसके गमन के उपरान्त महाराज श्रीकृष्ण को चिन्ता हुई कि गुणों के समुद्र कुमार के अनुज का किसके गर्भ में अवतरण कराया जाए। कुछ काल विचार करने के पश्चात् उन्होंने निश्चय किया कि यदि सत्यभामा के गर्भ से उसका अवतार हो, तो पूर्व-भव का भ्राता होने के कारण कुमार से उसकी प्रीति अवश्यम्भावी है। साथ ही सत्यभामा एवं रुक्मिणी का विद्वेष भी तिरोहित हो जायेगा।' किन्तु कुमार की अप्रसन्नता की आशंका से उन्होंने यह कामना किसी से प्रगट नहीं की। फिर भी देवयोग से अपने अनुज के उत्पन्न होने का रहस्य कुमार से गुप्त न रह सका अर्थात् उसे ज्ञात हो ही गया। उसने अपनी माता से जाकर कहा- 'मेरा पूर्व-भव का अनुज कैटभ षोडशवें स्वर्ग में इन्द्र के पद पर है। उसने पिता श्रीकृष्ण के पुत्र रूप में जन्म लेने की कामना की है। किन्तु पिताश्री वह पुत्र विमाता सत्यभामा को देना चाहते हैं। यदि आप की कामना हो, तो आपके 165 उदर से ही उसका अवतरण हो सकता है।' रुक्मिणी ने कहा- 'हे पुत्र ! यह कैसे सम्भव हो सकता है ?' कुमार कहने लगा-'जिस दिन सत्यभामा के संयोग की रात्रि आयेगी, उस दिन मैं आपको कृत्रिम सत्यभामा | बना कर पिताश्री के समीप भेज दूंगा।' किन्तु रुक्मिणी ने यह प्रस्ताव सर्वथा अस्वीकार कर दिया। वह