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________________ / 161 PP Ad Gunanasun MS संवाद सुन कर सत्यभामा अत्यंत संतप्त हुई, जिसका वर्णन उसके अतिरिक्त भला अन्य कौन कर सकता है ? स्नेह-विह्वल नारायण श्रीकृष्ण ने प्रद्युम्न को लक्ष्य कर कहा—'हे पुत्र ! अब तुम अपनी माता को यथाशीघ्र ले आओ।' अभी कुमार सङ्कोच में पड़ा था कि नारद मुनि विनोद में बोल उठे—'संसार में सब को अपनी भार्या प्रिय होती है। इसलिये यह क्यों नहीं कहते कि मेरी भार्या एवं अपनी भार्या को ले आओ ?' श्रीकृष्ण ने कहा-'हे प्रभु! अकस्मात् पुत्रवधू कहाँ से प्राप्त हो गई ?' तब नारद ने स्पष्ट किया-'दुर्योधन ने अपनी जो कन्या (उदधिकुमारी) भानुकुमार के सङ्ग परिणय हेतु भेजी थी, प्रद्युम्न ने कौरवों को परास्त कर उसका अपहरण कर लिया है। वह विमान में रुक्मिणी के सङ्ग बैठी है।' श्रीकृष्ण प्रसन्न हुए एवं उन्होंने कहा'एवमस्तु ! अपनी जननी एवं नव-वधू दोनों को ले आओ।' कुमार ने पिता की आज्ञा के अनुसार विमान को भूतल पर उतारा, उस समय रुक्मिणी एवं उदधिकुमारी को सकुशल देख कर सब लोग प्रसन्न हुए। व्योमरूपी आँगन से उतर कर रुक्मिणी ने नव-वधू के साथ श्रीकृष्ण को प्रणाम किया। श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को तत्काल ही आज्ञा दी कि पुत्र एवं वधू के नगर-प्रवेश महोत्सव को सम्पन्न कराने का आयोजन करो। तब रुक्मिणी अपने पार्षदों के सङ्ग नगरी में गयी एवं पुत्र के आगमन का महोत्सव सम्पन्न करने लगी। ध्वजातोरणादि से सुशोभित द्वारिका नगरी की अपूर्व शोभा की गई। मन्त्रियों ने जब सूचित किया कि द्वारावती का श्रृङ्गार हो चुका है, तो वादित्रों एवं नर्तकों के साथ सब लोग नगर की ओर अग्रसर हुए। प्रवेश-द्वार पर नर-नारियों की विपुल संख्या अभ्यनार्थ एकत्रित हो गयी। कमार के दर्शन की लालसा में उतावली हुई नारियों ने हड़बड़ी में अपने श्रृङ्गार विकृत कर लिये। यहाँ तक किकिसी-किसी ने मुख में काजल, नेत्रों में केशर तथा कर्णों में बिछुए एवं चरणों में कर्णफूल धारण कर। लिये / कुमार के अनिन्द्य सौन्दर्य से तृप्त होकर कितनी ही नारियाँ परस्पर वार्तालाप करने लगीं। एक ने कहा- 'हे सखी! रुक्मिणी सदृश सुन्दरी नारी के लिए कुमार ही उपयुक्त पुत्र है।' एक प्रौढ़ा ने कहा- 'यदि मेरे पुत्र हो, तो कुमार सदृश हो। रुक्मिणी एवं श्रीकृष्ण धन्य हैं, जिन्हें ऐसे पुत्र-रत्न की प्राप्ति हई। वह विद्याधरी कनकमाला भी धन्य है, जिसने कुमार का लालन-पालन किया। उदधिकमारी का सौभाग्य है कि उसे ऐसा पति मिला। द्वारावती का पुण्य भी किसी से लेशमात्र भी न्यन नहीं, जिसमें Jun Gun Aaradhak Trust 26 21
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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