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________________ 123 P.P Ad Gunun MS रुक्मिणी पड़ा। पहिले उसके विवाह-सम्बन्ध का निश्चय राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल के साथ हुआ था। नारद मुनि के मुख से प्रशंसा सुन कर वह नारायण श्रीकृष्ण पर अनुरक्त हो गयी। उसो दूत द्वारा गुप्त रूप से श्रीकृष्ण को बुलवाया ! श्रीकृष्ण एवं बलदेव दोनों भ्राता कुण्डनपुर जा पहुँचे। वे शिशुपाल ला वध कर रुक्मिणी को पटरानी का पद देकर द्वारिका ले आये। उसी रुक्मिणी के गर्भ से तू उत्पन्न हुआ है / जन्म के छठवें दिन ही तुझे एक दैत्य हर कर ले गया था।' प्रद्युम्न ने प्रश्न किया- 'हे मुनिराज! मेरा अपनी माता से विशेग किस पाप के उदय से हुआ है ?' यतिराज बोले- 'हे वत्स ! उसमें तेर। कोई भी पाप का कारण नहीं है। यह वियोग तेरी माता के पूर्व-जन्म के पापोदय से हुआ है। जब वह लक्ष्मीवती ब्राह्मणी थी, तब उसने एक मयूर-शावक को उसकी माता से पृथक कर दिया था, उसी विशेग-भानित पाप के कारण तेर। वियोग हुआ है। ये तेरे षोडश वर्ष माता के कर्मफल से उस से पृथक व्यतीत हुए हैं। हे वत्स! इसलिये किसी का भी वियोग नहीं करना चाहिये। पाप का फल हानिप्रद ही होता है।' मुनि महाराज का आदेश सुन कर प्रद्युम्न कनकमाला के महल की ओर गया। प्रद्युम्न बिना प्रणाम किये ही नकमाला के समीप ठ गया। प्रसन्नता से छानकमाला का मन-मयूर नृत्य कर उठा। उसने सोचा-'ऐसा प्रतीत होता है, आज इसने मेरे प्रति माता का भाव त्याग दिया है, अन्यथा प्रणाम लो अवश्य करता।' उसने कुमार से कहा- 'हे महापाग कामदेव ! यदि तुम मेरे कथनानुसार चलोगे, तो मैं तुम्हें रोहिणी आदि असाधारण विद्यायें प्रदान करूँगी।' प्रद्युम्न ने हँसते हुए कहा- 'मैं ने कब तुम्हारी आज्ञा का उलङ्घन किया है ? मुझे विद्यायें दो या न दो, मैं तुम्हारा आदेश अवश्य मानँगा। तब सन्तुष्ट होकर कनकमाला कहने लगी-'लो पहिले इन मन्त्रों को विधिवत् ग्रहण करो।' उस मूर्खा ने प्रसन्नतापूर्वक कुमार को वे विद्यायें प्रदान कर दो।' ____ विद्यायें प्राप्त कर प्रद्युम्न कहने लगा- 'हे पुण्यरूपे! जिस समय मेरे शत्रु ने मेरा अपहरण कर पर्वत / श्री कन्दरा में रखा था, उस समय बाप ने ही मेरी रक्षा की थी। बतराव जाम ही मेली पाता हैं। पुत्र के योग्य जो कार्य कहो, मैं प्रस्तुत हूँ।' ऐसे वज्रपात सदृश वचन सुन कर वह कुछ कठोर प्रत्युत्तर देना चाहती ही थी कि प्रद्यम्न प्रणाम कर अपने महल में चला गया। भन्न तो कनकमाला क्रोध से तमतमा उठी। उसकी समस्त / Enteerres व
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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