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________________ P.PAC Gunun MS पाप नष्ट हो जायेंगे। वस्तुतः आप ने मुझे भूत, भविष्यत् एवं वर्तमान में योग्य पात्र बनाया। यदि ऐसा न होता तो आपका यहाँ आना सम्भव नहीं था। वे धन्य हैं, जिन्हें आप जैसे महानुभावों के दर्शन एवं स्वगृह पर आगमन का सौभाग्य प्राप्त होता है।' महाराज श्रीकृष्ण ने नारद की प्रशंसा करते हुए अपने सौभाग्य की सराहना की। पुनः मुनि की आज्ञा पा कर वे सिंहासन पर आरूढ़ हुए। नारद ने कहा-'हे राजन् ! आप ध्यान दे कर सुनें। मैं आप से मिलने के लिए लाया हूँ। यदि आप जैसे सत्पुरुषों के दर्शन से वञ्चित रहँ.तो मेरे जीवन की आवश्यकता ही क्या ? जिनेन्द्र.बलदेव. नारायण. परुषोत्तम-ये सभी आराध्य होते हैं इनके दर्शन के बिना जन्म निष्फल है।' इस प्रकार वार्तालाप होने के उपरान्त नारद मुनि ने देश-देशान्तरों के सम्वाद सुनाये तथा अनेक तीर्थों से प्राप्त आशीर्षे उन्हें दो। सौभाग्य से नारद मुनि तथा महाराज श्रीकृष्ण के सम्वाद के समय ही श्री नेमिनाथ कुमार का आगमन हुआ। भावी जिनेश्वर को देख कर सारी सभा सम्मान में खड़ी हो गयी। स्वयं नारदजी ने उन्हें योग्य उत्तम सिंहासन पर विराजमान कर भक्तिपूर्वक उनकी स्तुति प्रारम्भ की-'हे जिनेश्वर! आप विजयी हों। हे पापनाशक ! आप की सदा जय होती रहे। आप जरा-मरण के दुःखों से मुक्त करनेवाले हैं। आप जिनागम के प्रकाशक, भव्य कमलों को प्रफुल्लित करनेवाले सूर्य हैं, अन्धकार के विनाशक चन्द्र हैं / देवों द्वारा पूजित हे त्रिभुवनपति ! आप को नमस्कार है / हे कल्याणकर्ता गणधरादि के नाथ! आप को नमस्कार है। आप कामरूपी गज के लिए सिंह के समान हैं। आप मोहरूपी सपं के लिए गरुड़ हैं। हे जरा-मरण विनाशक / आप को बारम्बार नमस्कार !' ऐसे वन्दना-स्तुति कर नारद मुनि अपने योग्य एक सिंहासन पर बैठ गये। परस्पर कुशल प्रश्नादि के बाद नेमिनाथ, श्रीकृष्ण, बलभद्र सब को अतीव आनन्द हुआ। नारदजी की उपस्थिति से सब को प्रसन्नता का अनुभव हो रहा था। ___ तदुपरान्त नारद ने महाराज श्रीकृष्ण से कहा-'जाप मेरा कथन ध्यान से सुनें। मैं अनेक देशों में | भ्रमण करता हुआ जिन-वन्दना करता रहता हूँ। आप भी मुझे विस्मृत नहीं करते। मेरी सदा यही अभिलाषा रहती है कि आप सुख से रहें / मुझे भाप के सुख-से-सुख तथा दुःख-से-दुःख का अनुभव होता है। इसीलिये मुझ में अन्तःपुर (रनिवास) में जा कर आप की रानियों के दर्शन की इच्छा उत्पन्न हुई है। मैं निश्चय करना Jun Cun Aancha Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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