________________ // 8 // AESA 3 अर्थ-आ शत्रुजयगिरिनुं सेवन करवाथी पापी पुरुषो पण पाप रहित थाय छे, खरेखर आ पवित्र तीर्थभूमिना प्रभावी माटी / पण सर्वोत्तम रत्नपणाने प्राप्त करे छे // 22 // ये शुद्धभावेन निभालयन्ति, भव्या महातीर्थमिदं कदाचित् / किं श्वभ्रतियग्भवसंभवः स्याद् !, न शेषगत्योरपि जन्म तेषाम् // 23 // अर्थ-जे भव्यप्राणीओ आ तीर्थन कोइ पण समये निर्मळभावपूर्वक नेत्रथी दर्शन मात्र करे छे, तेओने देवगति तथा मनुष्यग-1 तिमां पण जन्म लेवो पडतो नथी, तो पछी नरक अने तिर्यंचगतिनो तो संभवज क्याथी होय ? / अर्थात् आ पवित्र तीर्थर्नु भानपूर्वक दर्शन करनारा भाग्यशाली भव्य भाणीओने चार गतिमां जन्म-मरणनी विडंबना भोगववी पडती नथी, तेओ अनंत सुखमय मोक्षमा जाय छे श्रीमयुगादीशमुखाद् मुनीन्द्रा-स्तत् तन्महातीर्थफलं निशम्य / श्रीपुण्डरीकप्रमुखा निषेव्य, तत्तीर्थमापुः समयेऽपवर्गम // 24 // अर्थ-आ प्रमाणे श्रीमान् युगादि प्रभुना मुखथी पुंडरीक गणधर विगेरे मुनीन्द्रोए ते महातीर्थनो प्रभाव तथा तेनी सेवाथी म8ळता फळने सांभळी, ते शत्रंजय तीर्थ नु सेवन करी, पोतपोताने समये मोक्ष पाम्या // 24 // प्राप्त शिवं श्रीऋषभे सुतोऽस्य, शत्रुञ्जये श्रीभरताख्यचक्री। SARALA कर A Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak