________________ नाभांक चरित्रं // 37 // अर्थ-हवे ते सोम सातमी नारकीमां तेत्रीश सागरोपम सुधी महाव्यथाओ भोगवी,त्यांथीनीकळी दुःखमय संसारमा भटकी भटकी खेडुत थयो % | कौशिकाख्योऽम्बरग्रामे, ग्रामेशस्य गृहे च सः। कर्माणि कुर्वन् सर्वेषां हालिकानां कृतेऽन्यदा // 147 // आदाय भक्तं प्राचालीद, मागें मासोपवासिनम् / वीक्ष्य सन्मुखयान्तं, मुनिं भक्त्या न्यमन्त्रयत् // 148 // अर्थ-खेडुतनाभवमां जन्म लीधेल सोमनु नाम कौशिक हतुं ते कौशिक अंबर नामना गाममां ते गामना स्वामीने घेर काम करतो, अने पोतनो निर्वाह चलावतो. एक दिवशे कौशिक सर्व खेडुतोने माटे भात लइ खेतर जवाने नीकळ्यो. रस्तामा मास उपवासवाळा एक मुनिराजने सामा आवता जोइ अत्यन्त भक्तिपूर्वक पोतानी पासे रहेल भात बहोराववा विनति करी // 147 थी 148 // यात्रायफलं पूर्व, प्रत्यब्दं यत् समुद्रतः। तेन प्राप्तं ततः पुण्यात, तस्यैषा वासनाऽजनि // 149 // अर्थ-तेने आ खेडुतना भवमा मुनिने अन्न वहोराववा रूम शुभ अध्यवसाय उत्पन्न थयो तेनुं कारण एज के, तेणे पूर्वभवमा समुद्रपाल राजा पासेथी दर वर्षे वे यात्रानुं फळ मेळव्युं हतुं, अने ते पुण्यना प्रभावथीज तेने आवा प्रकारनी शुभ वासना उत्पन्न थइ. स्यादेतद्भक्तभोक्तृणा-मन्तरायस्ततो न मे / कल्पतेऽन्नमिदं साधु-नेत्युक्ते च सको जगी // 150 // अर्थ-कौशिके भात ग्रहण करवानी विनति करी त्यारे मुनिराजे कयु के-' आ भोजन तुं खेतरमां भोजन करनाराओ माटे लइ जाय छे, ते अन्न जो हुँ ग्रहण करंतो तेओने अंतराय थाय, तेथी आ भात मारे वहोर, कल्पे नहीं. आ प्रमाणे मुनिराजे ज्यारे भात वहोरवानी अनिच्छा दर्शाची त्यारे तेणे कायु के-॥ 15 // Jun Gun Aaradhak Gunratrasuri MS