________________ चरित्रं // 31 // 8 अर्थ-मत्स्यर्नु आयुष्य पूर्ण करी सातमी नारकीमा गयो. त्यांची नीकळी तंदुलीयो मत्स्य थयो. त्यांथीवळी पाछो दुःखना सागर नाभाकात समान सातमीज नारकीमा गयो.॥११९॥ P विपर्यासेन चण्डाल-स्त्र्याजियोनिषु पूर्ववत् / क्रमेण सेहे कष्टानि, पष्ठादिनरकेषु च // 120 // अर्थ-वळी पाछो विपर्यासवडे (उलटी रीते) चंडालखी विगेरे योनिमां तथा क्रमसर छठ्ठी विगेरे नारकीमा पूर्वनी जेम उत्पन्न थइ असह्य कष्टो सहन कर्या // 120 // ततो निपतितो घोरे, संसारे दुःखसागरे। देवद्रध्यविनाशस्य, ज्ञेयं सर्वमिदं फलम् // 121 // P अर्थ-त्यार पछी दुःखसागर घोर संसारमा भिन्न भिन्न स्थळे उत्पन्न थइ अपार कष्टो सहन करतो छतो रझळ्यो. आ सर्व देवद्रव्य 8/ विनाशनुंज फळ जाणवू // 121 // ___अन्यायात् स्वल्पदेवस्व-भक्षणादपि यद्यभृत् / शैवःश्रेष्ठी सप्तकृत्वः, श्वाऽतो चै त्याज्यमेव तत् // 122 // है अर्थ-अन्यायथी जरा मात्र पण देवद्रव्यनुंभक्षण करवाथी शैव शेठ सातवार कूतराना भवमां उत्पन्न थयो, माटे खरेखर ते तजवा योग्य छे // अत्रान्तरे विभो! कोऽली, श्रेष्ठी जातश्च श्वा कथम्? / इति नाभाकभूपेन, पृष्टे गुरुरभाषत // 123 // 15/ अर्थ-आ वखते नाभाकरानाए महात्मा युगंधराचार्यने पूछयु के–'प्रभो ! आ शैव शेठ कोण ? अने तेने सात वखत कूतरानो अवतार केम ग्रहण करवो पड्यो ?' आ प्रमाणे नाभाक राजाए पूछ्वाथी सद्गुरु महाराजे पण ते चरित्रनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे क OCCALCCCCCA 15-1506-15C%ार AC Gunnatasun Jun Gun Aaradhak