________________ अर्थ-वैराग्यमां मग्न बनेला ते समुद्रपाल महामुनि शांतिपूर्वक एकवीश दिवस अणसण करी सर्वार्थसिद्ध नामना देवलोकने विषे अनुत्तर विमानमां देवपणे उत्पन्न थया // 107 // नाभाक ततश्च्युत्वा कुलं शुद्धं, लब्ध्वा संयमराज्यतः / आसाद्य केवलं ज्ञानं, मोक्षसौख्यमवाप सः॥१०॥ // 28 // अर्थ-त्यांथी च्यवीने पूर्व भवमां प्राप्त करेला श्रेष्ठ चारित्ररूप राज्यना बलथी उत्तम कुळ पामीने केवलज्ञान प्राप्त करी मोक्षे गया. 18 इतश्च तामलिप्त्यां स,सिंहःश्रुत्वा स्वबान्धवम् / राज्ञा विसृष्टं सत्कृत्य, यात्रार्थ सत्यभाषणात् // 109 // 4 निजाऽऽगःशया सर्व-मादाय सपरिच्छदः। जगाम सिंहलद्वीपं, पोतमारुह्यतत्क्षणात् ॥११०॥युग्मम्। अर्थ-हवे तामलिप्ती नगरीमा समुद्रपालनो नानो भाइ जे सिंह हृतो तेणे पोताना मोटा भाइने कष्टमां नाखवा माटे राजाने भंभेर्यो हतो, पण समुद्रपाले सत्य हकीकत जाहेर करवाथी छेवटे सत्यनो विजयथयो अने तेथी समुद्रपालनो दंड करवाने बदले तेनो उलटो 5 सत्कार करी राजाए शत्रुजयनी यात्रा माटे विसर्जन कर्यो. आ प्रमाणे बनेली हकीकत सांभळी पोते राजानो गुन्हेगार बनवानी : 6 शंकाथी सिंह परिवार सहित पोतानुं सर्व लइने तेज क्षणे वहाण उपर चडी समुद्र मार्गे सिंहलद्वीप गयो // 109 थी 110 // राजप्रसादं तत्राप्य, दन्तिदन्तजिघृक्षया ! घोरे स्वयमरण्येऽगा-दलाभादन्यवस्तुनः // 111 // P अर्थ-सिंहलद्वीपमां सिंहे त्यांना राजानी महेरबानी मेळवी. पछी अन्य वस्तुओनी खरीदोथी लाभ न थाय तेवू होवाथी हाथीदांत 18 ग्रहण करवानी इच्छाथी पोते घोर अरण्यमा गयो // 111 // . Jun Gun Aaradhak CAREAAAAA Gunratnasun MS