________________ (द अर्थ-माटे हुँ मारा स्थानके जाउं छं. पण छेवटमां मारे तमोने एटलं जणाववान के, तमारे दर वर्षे मारा निमित्ते बे यात्रानुंपुण्य नाभाक देचुं. आ प्रमाणे ज्यारे व्यन्तरदेवे पोतानो समस्त व्यतिकर राजाने स्पष्ट कही बताव्यो, अने छेवटनी बे यात्राना पुण्यनी मागणी चरित्रं करी त्यारे राजाए. पण तेनु वचन मान्य कर्यु // 94 // // 25 // यतः-यद्वस्तु दीयते चेत्तत, सहस्रगुणमाप्यते / तद्दत्ते सकृते पुण्यं, पापे पापं च तदगुणम् // 15 // 1 // 25 // | अर्थ-जे वस्तु दान तरीके आपवामां आवे छे, तेथी हजारगणी प्राप्त थाय छे. वळी जे सुकृतने विषे अपाय छे ते पुण्य आपे छे, अने जे पाप आरंभकारी कार्यमा अपाय छे ते तेटला ज गणुं पाप आपे छे. // 95 // दीयमानं धनं किञ्च, धनिकस्याऽपचीयते / सुकृतं दीयमानं तु, धनिकस्योषचीयते // 16 // 18 अर्थ-वळी धनिकपुरुष दान करातुं धनतो ओर्छ थाय छे, पण दान करातुं सुकृत तो धनिकने वृद्धिज पामे ई-मुकृतनुं जेम | जेम दान करीए तेम तेम घटवाने बदले ते वधतुंज जाय छे // 96 // श्राव्यते सुकृतं यावद्, योऽन्तकालेऽपि तावतः / निजश्रद्धानुमानेन, स तदैवाऽश्नुते फलम् // 97 // 5 अर्थ-जे माणसने अंत वखते पण जेटलं सुकृत संभळाय छे ते मनुष्य पोतानी श्रद्धाना अनुमाने करीने तेटला मुकृतना फळने तेज वखते प्राप्त करे छे // 97 // - ततः श्रावयिता पश्चाद्, विधते मानितं यदि।तदा सोऽप्यनृणः पुण्य-भाग भवेदन्यथा न तु // 98 // BAERARIAGAR SASARS 1955 ARRESS Ac Sunratnasun MS