________________ चरित्र 23 // | अर्थ-यारवाद कचेरीमा सभ्यो साथे केटलीक वातचीत करी, राजाओने सन्मान पूर्वक विसर्जन करी, पोताना गृहमंदिरमा देनाभाक | वोने पूजे छे तेवामां पोतानी सन्मुख एक व्यंतर जोयो / 84 // // 23 // पृष्टः कस्त्वमिति क्षोणि-भृता स व्यन्तरोऽवदत् / तामलिप्त्यामहं नाग-नामा प्रान गोष्ठिकोऽभवम्॥८५॥ अर्थ-समुद्रपाल राजाए पूज्यु के-'तुं कोण छे ?' त्यारे ते व्यंतरदेवे कह्यु के-हुंतामलिप्ति नगरीमा प्रथम नागनामनो गोष्ठिक हतो // 85 // . पूर्वजैः कारिते चैत्ये, सारां विदधतो मम / कुटुम्बं सकलं क्षीणं, देवस्वेनैव पोषितम् // 86 // 8 अर्थ--मारा पूर्वजोए बन्धावेला जिनमंदिरनी सार संभाळ करतां देवद्रव्यथीज पोषण पामेल मारुं सघळं कुटुंब नाश पाम्युं // 86 // 8 - देवद्रव्योपभोगेन, कुटुम्बस्य क्षयो भवेत् / नैमित्तिकादिति श्रुत्वा, भीतः कर्म तदत्यजम् // 87 // - अर्थ-हवे कोइक समये निमित्तियाना मुखथी सांभळ्युं के-'देवद्रव्यनो उपभोग करवाथी कुटुंबनो नाश थाय छे' आ प्रमाणे | सांभळी हुँ डर पाम्यो, अने तेथी में ते कार्य-देवद्रव्यनो उपभोग करवो छोडी दीधो. // 87 // चतुर्विंशतिदीनार-सहस्रो यान्तिकेऽभवत। देवसत्काऽवशिष्टा सा, क्षितौ क्षिप्ताऽथ पत्नयुक // 8 // . . . अर्थ-मारी पासे देवद्रव्य तरीकेनी चोवीश हजार सोनामहोरो जे बाकी रही हती, ते लेखिव पत्र सहित पृथ्वीमां दाटी. // 8 // K . कृत्यर्यथोचितेर्जीवन. प्रान्तेहं कष्टतो निशि / स्थविर्या प्रातिवेश्मिक्या, पव्यमानं मृदुस्वरम् // 89 // SASARA8%E MAc Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha