________________ नाभाका पोता // 21 // दान जोइने दृष्टिदान करतो मेघ पण लज्जा वडे श्याम थइ गयो, अर्थात् अखूट दृष्टिदान करतो मेघ पण आ राजाना दान आगळ नाभाक / पोताने तुच्छ मानतो थको लज्जा पामी श्याम थइ गयो // 75 // विधायाऽष्टाहिकां नाग-नामग्राहं जगत्पतेः। पूजाः दानादिसत्कृत्यैः, स निधानार्धमव्ययत् // 76 // // 21 // 18/अर्थ-नागश्रेष्ठीन नाम ग्रहण करी श्रीजिनेन्द्रनो आठ दिवस अट्ठाइ महोत्सव करी, पूजादान विगेरे सुकुत्यो करवामां ते नागश्रेमैं ठोना निधाननों बचेलो अडयो भाग समुद्रपाल राजाए वापर्यो / 76 // सिद्धक्षेत्रादथोत्तोर्य, स्वपुरं प्राविशन्नृपः / रुद्धो राज्याऽसहिष्णुत्वाद, वाणिजो दुष्टपार्थिवैः // 77 // अर्थ-हवे समुद्रपाल सिद्धक्षेत्रथी उतरीने जेवामां पोतानानगरमा प्रवेश करतो हतो, तेवामां ते वैश्य होवाथी तेने मळेला राज्यने सहन नहीं करनारा आसपासना ईर्ष्या दुष्टराजाओए घेरी लीधो // 77 // मिथः प्रवृत्ते युद्धेऽथ, भग्नां वोक्षध निजां चमूम् / श्रोसमुद्रनृपो यावत्, किंकर्तव्यजडोऽजनि // 78 // है अर्थ-परस्पर बन्ने सैन्यनुं युद्ध प्रवत्यु, पण छेवटमां दुश्मनोना पराक्रमथी पोतानी सेनाने वीखराइगयेली जोइ समुद्रपाल राजा / 'हवे शुं करवू ?' ए प्रमाणे जेटलामां विचारवमळमां गुंचवायो 78 4 तावन्निबिडबन्धेन, निबद्धान् योजिताञ्जलोन् / पादाग्रे लठतो वीक्ष्य, रक्ष रक्षेति जल्पतः // 79 // द्र अर्थ-तेटलामां मजबूत बन्धनोथी बन्याएलां अने वे हाथ जोडी पगमां आळोटता शत्रुराजाओने पोतानी सन्मुख ' रक्षण करो CARGOGICHES 3355SNEHRASE MAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak