________________ नाभाक 5555 GEORGESGLASSSSSSS अर्थ आ मारो भाइ जो स्त्रीना कथन मुजब देवद्व्यनो उपभोग करशे, तो अत्यंत भयंकर नरकादि दुर्गतिमा जशे, माटे आने मारे र मृदु अने श्रेष्ट वाणीथी प्रतिबोध करवो जोइए. चरित्रं निश्चित्येत्यवदद् भ्रातः!, पातकात् श्वभ्रपातुकात् / न कि बिभेषियद्देव-द्रव्यभोगमपीच्छसि?॥५३॥ अर्थ-एम निश्चय करीने नाना भाइने कयु के-बन्धु! नरकादि भयंकर गतिमां पाडनार पापथी शुतुं डरतो नथी? के जेथी देव-IM // 16 // द्रव्यना पण उपभोगनी इच्छा करे छे. // 53 / / देवद्रव्येण यत्सौख्यं, यत्सौख्यं परदारतः / अनन्तानन्तदुःखाय, तत्सौख्यं जायते ध्रुवम् // 54 // अर्थ-जे मनुष्य देवद्रव्यना उपभोग वडे तेमज परस्त्री सेवन द्वारा जे ममर्नु मानी लीधेल मुख मेळवे छे, ते सुख निःशंक अनं| तानंत दुःख प्राप्त करावनार थाय छे. // 54 // . (जैन सिद्धान्तमा पण का छे के "चेइयदव्वविणासे, रिसिघाए पवयणस्स उड्डाहे / संजइयचउत्थभंगे, मुलग्गी बोहिलाभस्स"॥५५॥ अर्थ-चैत्यना द्रव्यनो विनाश करवाथी, ऋषिनो घात करवाथी, शास्त्र विरुद्ध प्ररूपणा करवाथी, तेमज संयतिना चतुर्थत्रतनो भंग | करवाथी, सम्यक्त्वना मूलमांज अग्नि पडे छे; अर्थात सम्यक्त्व नाश पामे छे. // 55 // वरं सेवा वरं दास्य, वरं भिक्षा वरं मृतिः / निदानं दीर्घदुःखाना, न तु देवस्वभक्षणम् // 56 // Gunratnasuri M.S . Jun Gun Aaradhak