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________________ श्रीमरुतुङ्गमूरिकिरजिल श्रीनायकफायरितम् 14 // 27 पो भोगवीटिविसथयो.॥११॥ हिन्दी :. बाद में वह तीसरी नर्क में गया। वहां से फिर वह वन में दुष्ट सिंह हुआ। सिंह का आयुध्य पुरा कर के चौथे नर्क में गया, वहाँ * अपार कष्टदायक :खों को भोगकर वह दृष्टिविष सांप हुआ। मराठी :- . नंतर तो तिसन्या नरकांत गेला तेथून पुन्हा तो दुष्ट सिंह झाला. सिंहाचे आयुष्य पूर्ण करून चौथ्या नरकात गेला. तेथे अपरंपार कष्टदायक दुःख भोग्न तो दृष्टिविष (पारी) साप झाला. English - Then he went to the third hell. From here he again attained the form of an impious lion. From here he had to go to the fourth hell. Here after undergoing acute vexation and tribulation, he was given the form of a vicious and a poisonous snake. * पापम्मश्कललण्या, चण्डालस्त्रवि ततोऽजनि। अकराव-मजनिष्टार्णवे तिमिः // 118 // समान:- ततः पञ्चमनरकम् लब्ध्वा चण्डालस्त्री अजनिी षष्ठम् नरकमवाप्य अर्णव तिमि: अजनिष्ट। त्मिक तत: सर्वकमन: अनन्तरम् पञ्चमम् नरकम् लब्ध्वा तत: निष्क्रम्य चण्डालस्य मातङ्गस्य स्त्री चण्डालस्त्री मातङ्गस्त्री अजनिी अजायता तदनन्तरम् षष्ठम् नरकमवाप्य अवि सागरे तिमि: मत्स्य: अजनिष्ट // 11 // सरलार्य:- साजन्मानन्तरम् पञ्चमम् नरकम् लब्ध्वा तदनन्तरम् चण्डालस्त्री अजायत। तत: षष्ठम् नरकम प्राप्य समुद्रे तिमिः (मत्स्य:) अजायत।।११८॥ ગુજરાતી :- ત્યાંથી પાંચમી નારકીમાં ગયો, ત્યારબાદ ચંડાલની સ્ત્રી થયો. પછી છઠ્ઠી નારકીમાં ગયો. ત્યાંથી સમુદ્રમાં મત્સ્ય 29. // 118 // हिन्दी :- उसके बाद वह पांचवी नर्क में गया बाद में एक चांडाल की स्त्री के रूप मे जन्म हुआ। बाद में छठे नर्क में गया। वहाँ से समुद्र
SR No.036458
Book TitleNabhak Raj Charitram Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMerutungasuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages320
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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