________________ 307 धर्मः | दिरं // 12 // सचंदनहुमालीव / जुजंगौघनिषेविता // नाटकालननःश्रीवद्-घनोत्तुंगपयोधरा // 13 // जुजंगराजराजीव / महागोगविराजिनी / / मीनकेतुपताकेव / जगन्मोहविधायिनी // 14 // समग्रकामशास्त्रोक्ता-लिंगनादिगुणबजे / / सर्वातिशायिनैपुण्यं / दधार चतुरानना // 15 // च. तुनिः कलापकं // एवं वेश्याजने प्राज्यं / प्राधान्यं प्रवितन्वती // मान्या सा राजलोकस्य / पौरलोकस्य चाधिः कं // 16 // नरेंद्रामात्यपुत्रायै-स्त्यागिभिर्भोगिजिः सह / झुंजाना सुंदरान जोगान् / निन्ये का. लं यथासुखं // 17 // युग्मं // अन्यदा जठरे तस्या / गर्नः प्रारकिल // तेनासौ वर्धमानेन / नितरां पीडिता सती // 17 // स्वमातुः कथयामास / यथा मातर्ममाधुना // संजाता दारुणा पीडा / जठरांतः सुजःसहा / / 17 // युग्मं / / तयाप्याशु समाहूय / वैद्यस्यासौ प्रदर्शिता // तेना. वि दणमालोक्य / पृष्टं रोगस्य कारणं // 20 // यथेयं किं सदा चुक्ते / पिवत्यंबु च कीदृशं / स्थाने वा कीदृशे शेते / व्यापार वा करोति कं / / 21 // इत्यादि प्रश्निते कृत्स्ने / तेन वैद्येन मू. लतः // माता कुबेरसेनाया-स्तस्मै सर्व न्यवेदयत् // 15 // ततश्चासौ परामृश्य / कराग्रेण समं | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust