________________ Janathai-anand आ २-श्रीकदम्बगिर्यष्टक अने, 3 - चतुविशति-जिनस्तुति साथे त्रण रचनाओ- बोनुं सम्पुट सं. 2042 मा प्रकाशित थयां हतां / त्यार पछी छेक शिथिलता आवी गई पण अमारा उत्साहमां न्यूनता नहि आवा देतां आ वर्षे आ श्रीजु प्रकाशन रजू थाय छ, पूज्य गुरुदेवश्रीनो रचना-विश्व - सामान्य मानवीने ज्यारे सरस्वतीनी कृपानो प्रसाद मळे छे, तो तेनां मनमा सार्वभौम प्रवृत्तिओ जागे छे, उमळकाभेर ते एकलो ते प्रसादनो आनन्द नहि लेतो बीजाने पण वेचवानी भावना करे ज छे. ज्यारे तेवो प्रसाद महामति, लोक-कल्याणना अभिलाषी अने परमसंयमी संतने मळे तो ते माटे शुं कहेवू ? आपणा गुरुदेवने सरस्वतीनो आ दिव्यप्रसाद नानी उमरमां ज मळयो हतो। साधुजीवनमां आव्या पछी तेओ अत्यन्त उदारभावथी जिनशासननी सेवामां तत्पर बन्या हता। दैनिक साधुचर्यामांथी जेटलो समय तेमने मळयो तेमां तेओश्री कई ने कई लखताभणता ज रहेता. प्रतिक्षण पसार पामती तेमनी प्रतिभा कोई ने कोई सर्जन कर्या ज करती. तेना शुभ परिणामे तेओनां सजित-साहित्यनो संग्रह विविधलक्षी, विविध विषयवाळो तेमज विविधभाषामां सर्जायेलू तेमनी हैयातीमां ज बहार पड्य हतुं / ज्यारे तेओ पोतानी जीवनलीलाने संकेरी निर्वाण पाम्या, ते वखते पण तेमनुं सर्जन ढगळाबंध छपाववा माटे शेष हतुं / हवे तेनां प्रकाशनमाटे अमे प्रयत्न करीए छीए / आ प्रकाशनमां १-पंचपरमेष्ठि-गुणमाला (सौरभवृत्ति साथे), तेमज तेनो पूज्यश्रीवडे करायेल गूजराती अनुवाद, २-श्रीचतुर्विंशति-जिनस्तुतयः, ANUAmarAR P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust