________________ (164) जिनगुणमालसप्तमी। अशोकपुष्पमंजरी ( एक गुरु एक लघुके फ्रेमसे 31 वर्ण / मान थंभ देख औ सरोवरी भरी विसेख. खातका गभीर पेख पुष्प वारि राज ही। रूपकोट नाटसाल भाग दो वनै विसालं, वेदिका धुजा सताल माल आदि छाजहीं। हेमकोट कल्पवृच्छ वाग सोहने प्रतच्छ, रत्नपुंज धाम आवली मनोग गाजहीं। वज्र कोट चार पौल वार कोट सोल भीत. वीच वेदिका त्रिपीठ संभुजी विराजहीं // 1 // ___ जन्मके दश गुण / सवैया इकतीसा / वल तौ अतुल वीर स्रमको न होय नीर, हितमित वानी सब प्रानीकौं सहावनी। आदि संसथान है गभीर संहनन धीर, रूपकी सोभा अनूप सबकौं रिझावनी // सहस आठ लच्छन सरीर लोहू है खीर,... देहकी सुगंध और गंधकौं लजावनी। मलकौ न लेस लीय उपजै दसौं जिनेस, मेर करैं न्हौन सो सुरेस भक्त भावनी // 2 // घातिया कर्मोंके नाशसे दश गुण / जोजन सौ सौ सुभिच्छ व्योम चलें अंतरिच्छ, चारौं मुख चारौं दिस सब विद्यापत हैं। जीवको न वध होय उपसर्ग नाहीं कोय, कौलाहार लेत नाहिं ग्यानसुधा-रत हैं। (165) निर्मल सरूप माहिं तनकी न परै छाहिं, नख केस च. नाहिं आंख ना लगत हैं / घातिया करम नासि दसौं गुन परगास, जिनकी भगत कीय पाप-भै भगत हैं // 3 // ___ देवोंकृत चौदह गुण। / अरध मागधी भापा सवै रितु फल फूल, सिंह स्याल प्रीति रीति आरसी अवनि है / पौन वुहारै मेघ जल कन सुगंध झारै, . पाय तलैं कंज धारै आनंद सवनि है // निर्मल गगन और दसौं दिसा उजल हैं, फलैं खेत सोभै भूमि धर्म चक्र मनि है / आठौं मंगलीक सार सुर करें जैजैकार,. चौदै अतिसय तेरै देवकृत धनि है // 4 // फूल सनमुख वरखत मानौं वंदनिकों, देव दुंदुभीके बाजै भाजै पापभार जी। सिंघासन तीनसेती तीनलोकसाहब हौ, तीन छत्र कहैं रतनत्रय दातारजी // जानौं अच्छर सुपेद चौसठि चमर दुरै, औ कहा असोक वृच्छ हू असोक धारजी / भामंडल आरसी है वानी सुधा-धारसी है, नमों आठ प्रातिहारजके सिरदारजी // 5 // . अनंतचतुष्टय / लोकालोक दर्व गुन परजाय तिहूं काल, टांकी ज्यौं उकेर राखै ग्यानमैं प्रकास है / आठ प्रातिहार्य / Scanned with CamScanner