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________________ (160) पंच जोतिषी देव, पंच गोले साधारन / पढ पंचासतिकाय, मूलके भाव पंच गन // भव पंच परावरतनि निकलि, पंच नरक दुखसौं वह भेद पंच थावर समझि,पंच कल्यानकपद धरी छह वोलके चौवीस भेद।। नौं छमतमैं सार, दर्व षट् भेद प्रकासक। वाहज तप पट भेद, भाव तप पट दुखनासक // पट अनायतन तजौ, हानि पट वृद्धि अगुरू लघ। पुग्गलकै पट भेद, क्रिया षट गेह माहिं अघ // पट नरक जाय नारी कुमति, पट विध समकित वरनयौ। पूजादि कर्म षट् पापहर, पडावसिकसौं सुख भयौ // 12 // षट मंगल बंदामि, छहौं परजापति जानौ / पट सैना चक्रेस, संघनन पट परवानौ // संसथान पट जान, छविधि परजै नै धारौ / छहों काल परवान, काय पट दया बिचारौ // जिय मरन बेर षट दिसि चलै, पट लेस्या जो धारि है। षट अवधि ग्यानके भेद पट, विध निहचै व्योहार है१३ सात वोलके चौवीस भेद / सात नरक भयकार, व्यसन सातौं तज भाई। सात खेत धन खरचि, प्रकृति सातौं दुखदाई // सक सात विध सैन, रतन सव सात कृष्ण घर / * सात अचेतन रतन, सात चेतन चक्रेसर // 1 स्कंध-अंडर-आवास-पुलवि-देह गोलाकार पांच साधारण हैं। 2 पांच भस्तिकाय। .. (161) लखि सात धातमय तन असुचि, मौन सात विध धारकै। दाता गुन सातौं सात विध, अंतरायकौं टारकै // 14 // सात भंग सरधान, जान तन जोग सात है। समुद्घात हैं सात, सात संजम विख्यात हैं। तीन जोग विध सात, सात तन मैल वखाने / सात स्वरनके भेद, सीलव्रत सातौं जानें // निज नाम सात सातौं उदधि, यहां सात ही खेत हैं। प्रभु नाम ईति सातौं टलैं, सात तत्त्व सिवहेत हैं // 15 // आठ बोलके चौबीस भेद। आठ मूलगुन पाल, आठ मद तजौ सयानें। सम्यक आठौं अंग, ग्यानके आठ वखाने / ओठ ठौर न निगोद, आठ गुन सुरगन छाजैं। आठ जुगलके देव, आठ विध व्यंतर राजै॥ पूजियै आठ बिध देव जिन, आठौं अंग नबाइयै / देहरे आठ मंगल दरव, आठ पहर लौं लाइयै // 16 // आठौं प्रवचन धार, जोगके आठ अं आठ रिद्धि दातार, फरसके आठ भंग हैं। आठ समै दंडादि, आठ उपमान बखाने / आठ भेद सत आदि, आठ लौकांतिक जानें // अंगुल उत्तमभुव रोम वसु, आठ प्रातहारज भले / सब आठ ध्यान-पावकवि, काठ करम आठौं जले // 17 // नव वोलके चौबीस भेद। नवौं पदारथ धार, दरसनावरनी नौ विधि / नौ नै नैगम आदि, चक्रधारीकै नौ निधि // 1 पृथ्वी, जल, तेज, वायु, केवलीका शरीर, तथा आहारक ये छह और देव नारकीके शरीर, इन आठ स्थानोंमें निगोदजीव नहीं होते हैं। घ. वि. 11 Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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