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________________ (146) खान पानकौं खुस्याल व्रत सुनै विकराल, सावककी कुल चाल भूली बहु भाय रे। पूरब कमायो सो तो इहां आय खायौ अब. करि मन लाय जो पै आगें जाय खाय रे / / 10 ____उद्यमी पुरुष / अनंगशेखर छन्द।। मिथ्यात जात घातकै सुधा सुभाव रातक, अवृत्तकौं निपातकै सुवृत्तकी दसा वरी। कुराग दोस नासकै कुआसको निरासके, प्रसांतता प्रकासकै उदास रीत आदरी // सरीर प्रीत छारकै अनेक रिद्धि डारकैं, सुसिद्धिकौं निहारकै स्वरिद्धि सिद्धि लौं धरी। अकर्म कर्म गया सुग्यान ग्यानमै भया, महा स्वरूप देखके सुवंदना हमों करी // 20 // छुधा त्रिपा न भै करै न सीत तापसौं डरै, न राग दोपकौं धरै न काम भोग भोगना / त्रिभेद आप धारकै त्रिकर्मसौं निवारकैं, त्रिजोगसौं विचारकै त्रिरोगका मिटावना // 'अराधना अराधकै कपायकौं विराधकैं, सु सामभाव साधकै समाधका लगावना। वहाय पाप पुंजकों जलाय कर्म कुंजकों, सुमोख माहिं जाहिंगे इहां न फेर आवना // 21 // ___भगवानसे यथार्थ विनती / सवैया-इकतीसा / तारक स्वरूप तेरौ जानत है मन मेरौ, ध्यान माहिं घेरौ घिरै नाहिं को उपाय है। (117) तात मात भ्रात नात सात-धात-जात गात, हमसौं निराले सदा चित्त क्यों लुभाय है। क्रोध मान माया लोभ पांचों इंद्रीविष सोन, महा दुखदाय जीव काहे ललचाय है। न्याव तो तिहारे हाथ द्यानत त्रिलोकनाथ, नावत हौं माथ करी जो तुमैं सुहाय है // 22 // शिक्षा। चाह रहै भोगनिसौं लागत है लोगनिसौं, वेऊ तौ फकीर तोहि कैसे सुख करेंगे / जाकी छाहिं छिन माहिं चाह कछू रहै नाहि, ताहि क्यों न सेवै तेरे सब काम सरेंगे / ग्रीषम तपत सैल नीचें बहु जलकुंड, धाराधर आए विन कौन ताप हरेंगे। गंगा जमना अनेक नदी क्यों न चली जाहु, चातककौं स्वाति बूंद महाराज झरेंगे // 23 // आए तजि कौन धाम चलिवौ है कौन ठाम, करते हौ कौन काम कछू हू विचार है। पूरव कमाय लाय इहां आय खाय गए, आगैंको खरच कहा बांध्यौ निरधार है // विना लिये दाम एक कोस गामकौं न जात, उतराई दिय विना कौन भयौ पार है। आजकाल विकराल काल सिंह आवत है, मैं कह्यौ पुकार धर्म धार जो तू यार (!) है // 24 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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