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________________ या निवेदन / बाल्यावर किती पाठक शहाशय, न लगभग दो वर्ष पहले इस ग्रन्थके छपानेका कार्य प्रारंभ किया गया था, आज इतने समयके बाद तैयार होकर यह आपके हाथों में पहुँचता है / इच्छा थी कि इसके साथ कविवर द्यानतरायजीका परिचय और उनकी रचनाकी आलोचना आपकी भेंट की जाय; परन्तु इस समय मेरे शरीरकी जो अवस्था है उसके अनुसार यही बहुत है कि यह ग्रन्थ किसी तरह पूरा होकर आपतक पहुँच जाता है / लगभग चार महीनेसे मैं अस्वस्थ हूँ और इस कारण बहुत कुछ सावधानी रखनेपर भी इसमें कहीं कहीं कुछ अशुद्धियाँ रह गई हैं उनके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ। यदि कभी इसके दूसरे संस्करणका अवसर मिला तो ये अशुद्धियाँ भी न रहेंगीं और ग्रन्थकर्तीका परिचय और ग्रन्थालोचन भी लिख दिया. जायगा। - धर्मविलास बहुत बड़ा ग्रन्थ है। द्यानतरायजीकी प्रायः सब ही छोटी मोटी रचनाओंका इसमें संग्रह है। परन्तु आप इस ग्रन्थको बहुत ही छोटे रूपमें देखेंगे / इसका कारण यह है इसमेंके कई अंश जुदा छप गये हैं और इस लिए उनकी इसमें शामिल करनेकी आवश्यकता नहीं समझी गई। इसका एक अंश तो जैनपदसंग्रह ( चौथा भाग ) है जिसमें गानतरायजीके सबके सब पदोंका संग्रह है। यह हमने जुदा छपवाया है। दूसरा अंश प्राकृत द्रव्यसंग्रहका पद्यानुवाद है जो द्रव्यसंग्रह सान्वयार्थके साथ साथ छपा है। तीसरा अंश चरचाशतक है जो इसी वर्ष सुन्दर भाषाटीकासहित प्रकाशित किया गया है। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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