________________ कैथीलेके यातिर तू काम बद करता है, अपना मुलक छोड़ि हाथ लिया कांसों है / कौड़ी कौड़ी जोरि जोरि लाख कोरि जोरता है, कालकी कुमक आएँ चलना न मासा है।। सोइत न फरामोश हूजिये गुसईयाको, यही तो सुखन खूब ये ही काम खासा है // 44 // कवित्त (31 मात्रा)। हर छिन नाव लेइ साईका, दिलका कुफ़र सवै करि दूर। पाक बेऐव हमेश भिस्त दे, दोजके-फंद करै चकचूर // हमां सुमां जहान सब बूझै, नाहीं बूझैं बर्दै ते कूर। वेचि मूल वैचमन साहिब, चैसमों अंदर खड़ा हुजूर॥४५॥ जीवके वैरी वर्णन, सबैया इकतीसा / सफरस फास चाहे रसना हू रस चाहै, 'नासिका सुवास चाहै नैन चाहै रूपकौं। श्रवन शवद चाहै काया तौ प्रमाद चाहै, वचन कथन चाहै मन दौर धूपकौं॥ क्रोध क्रोध कस्यौ चाहै मान मान गह्यौ चाहै, माया तौ कपट चाहै लोभ लोभ कूपकौं।। परिवार धन चाहै आशा विपै-सुख चाहै,। एते वैरी चाहैं नाहीं सुख जीव भूपकौं // 46 // Jac वैरी दूर करनेका उपाय / जीव जो पै स्याना होय पांचौं इंद्री वसि करै, फास रस, गंध रूप सुर राग हरिकै / 1 परिवार / 2 अपना राज्य / 3 भिक्षाका पात्र / 4 चढ़ाई। 5 क्षणभर भी।-६ भूल जाना। 7 मलिनता।८-मोक्ष / 9 नर्कका जंजाल। 10 हम। तुम सब / 11 आखोंके (17) आसन वतावै काय वचकौं सिखावै मौन, ध्यानमाहिं मन लावै चंचलता गरिकै॥ क्षमा करि क्रोध मारै विनै धरि मान गारै, सरलसौं छल जारै लोभदसा टरिकै। . परिवार नेह त्यागै विषै-सैन छांडि जागै, तब जीव सुखी होय बैरी वस करिकै॥४७॥ नरकनिगोददुःख कथन / बसत अनंतकाल बीतत निगोदमाहिं, अखर अनंत भाग ग्यान अनुसरै है। छासठि सहस तीनसै छतीस बार जीव, अंतर मुहूरतमै जन्मै और मरै है॥ अंगुल असंखभाग तहां तन धारत है, तहांसेती क्यों ही क्यों ही क्यों ही कै निसरै है। इहां आय भूलि गयौ लागि विषै भोगनिमैं, ऐसी गति पाय कहा ऐसे काम करै है॥४८॥ निगोदके छत्तीस कारण / मन वच काय जोग जाति रूप लाभ तप, कुल बल विद्या अधिकार मद करना। फरस रसन घ्रान नैन कान मगनता, भूपति असन नारि चोरका उचरना // .. 1 संख्या प्रमाण; श्रुतज्ञानके अक्षरोंका भाग श्रुतकेवलीके ज्ञानमें देनेपर जो लब्ध आवे, उसको अक्षर कहते हैं / उसमें अनन्तका भाग दिया जाय फिर जो लब्ध आवै, उसका एक भाग सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकका ज्ञान होता है / 2 राजकथा, भोजनकथा, स्त्रीकथा और चोरकथाका कहनाः / / ध. वि.२ Scanned with CamScanner