________________ वीनजी // 38 // (258) कल आगरेमैं कछु दिल्ली माहिं जोर करी, , अस्सी माहिं पोथी पूरी कीनी परवीनजी ..छप्पय / गाय हंस उतकिप्ट, मधम मृतिका सुक जानौ / चलनी छाज पखान, फूटघट महिप प्रवानी // जोंक वोक फनधार, और मंजार उलू हूव / ए दस भेद जघन्य जान, स्रोता चौदह धुव / जो जो सुभाव धारक सहज, सो सो नाम धरावई, सो धन्य पुरुष संसारमैं,धरम ध्यान मन लावई 39 - सवैया इकतीसा। सात विस्न त्याग वारै व्रतसौं कियौ है राग, कंदमूल फूल साग सब त्याग करे हैं। बैंगन करोंदे तूत पेठा वेर तरबूज, .. . जामुन गोंदी अंजीर खिरनीसौं टरे हैं / चामधीव तेल जल हींग वासी पकवान, विदल अचार मुखेसों ( ? ) थरहरे हैं। जल छान लेत रात पानी नाज तजि देत, दसैनसों हेत ऐसे ग्याता गुन भरे हैं // 40 // . छप्पय / आप पढ़ा कछु होय, सुना कछु होय जथारथ। समझ ग्यान वैराग, क्रिया नित करत मुकत पथ // नई उकति नहिं धरै, जुगत बहु विध उपजावै / पिछले आगम देखि, कठिनकौं सरल बनावै // सुभ अच्छर छंद प्रगट अरथ, परमारथ वरनन करै / द्यानत ममता त्यागी सुकवि, जव जस बानी विसतरै 41 (259) राबया इकतीसा / कोयलको बोल जहां काक हू कलोल करें, मोरनिको घोर तहां मैंडकको सोर है। तूतीको सवद उहां तीतुर हू बोलत हैं, पानी माहिं मच्छको न मछलीको जोर है (?) // खग विद्याधर खग पंछी नभ गौन करें, वनमें मृगेंद्र मृग चाल ताही ओर है। तैसें वह कवि तामैं मैं भी लघु कवि ताम, गुन लीजी दोप मति कीजी लखि खोर है // 42 // भानके प्रकास दीपके उजास दीसै वस्तु, राह माहिं वारी माहिं गज दिष्टि आवै है / उरदू बाजार छोटे बड़े हैं दुकानदार, थोरा व्रत बहु व्रत व्रती नाम पावै है // राजा परजाकै सुतका उछाह एक सा है, नौ ग्रहमैं (?) हीरा अरु मूंगा हू कहावै है। तैसें कविताकी गिनतीमैं हम कविता है, वचन विलाससेती न्यारौ आप भाव है // 43 // घातिया करम नास लोकालोक परकास, सरवग्य कैसौ ग्यान हम कहां पायौ है। संसकृत प्राकृत न भाषा हु अलप वद्धि नाममाला पिंगल हू पूरा नाहिं आयौ है // इस माहिं कवि चातुरी कछु करी है नाहिं, सूधा धर्म मारगको उपदेस गायौ है। भूमंडल माहिं रविमंडल ज्यौं उदै करै, धरमविलास सबहीके मन भायौ है // 44 // Scanned with CamScanner