________________ (254) धर्मप्रशंसा, सवैया इकतीसा। चिंतामन जान कहीं पारस पाखान कहीं, ' कल्पवृच्छ थान कहीं चित्रावेलि पेखिये। कामधेनु रूप कहीं पोरसा अनूप कहीं, बनी है रसायन जवाहर विसेखियै // नृपकी प्रताप कहीं चंद भान आप कहीं, दीपजोति व्याप कहीं हेमरासि लेखिये। फैलि रह्यो ठौर ठौर भेख गह्यौ और और, एक धर्म भूप सब लोक माहिं देखिये // 27 // रतनौंकी खानि कहीं गंगाजल पानि कहीं, सीत माहिं घाम पौन सीतल सुगंध हैं। बड़े वृच्छ फल छांहिं अतर गुलाव माहिं, मेघकी भरन परै बहु मेवा खंध है // तंदुल सुवास कहीं आभूपन रास कहीं, अंबर प्रकास अति मोहको निबंध है। एक धर्मसेती सव ठौर जै जै कार होय, ताही धर्म विना घर बाहरमैं धंध है // 28 // नर्क पसुतै निकास करै स्वर्ग माहिं वास, संकटकौं नास सिवपदको अंकूर है। दुखियाको दुख हरै सुखियाकौं सुख करै, विघन विनास महामंगलको मूर है // गज सिंह भाग जाय आग नाग हू पलाय, रन रोग दांध बंध सबै कष्ट चूर है। (255) ऐसौ दयाधर्मको प्रकास ठौर ठौर होहु, तिहुँ लोक तिहुं काल आनंदको पूर है // 29 // इधै कोट उधैं बाग जमना यह है वीच, पच्छमसौं पूरवली असीन (2) प्रवाहसीं / अरमनी कसमीरी गुजराती मारवारी, नराँसेती जामै बहु देस बसें चाहसौं॥ रूपचंद बानारसी चंदजी भगोतीदास, जहां भले भले कवि द्यानत उछाहसौं। ऐसे आगरेकी हम कौन भांति सोभा कहैं, बड़ौ धर्मथानक है देखियै निवाहसौं // 30 // सहरमैं नहर है ठौर ठौर मीठे कूप, बाजार बहुत चौरा वसती सघन है। आन देसौंसेती जहां स्रावक अधिक वसैं, सुखी सब लोग अति ही उदार मन है // दान नित देत पूजा भावसौं परम हेत, सास्त्र सुनें हैं सचेत होत जागरन है। इंद्रपथ नाम वन्यौ इंद्रहीको सांचौ धाम, दिल्ली सम और देस माहिं नाहिं धन है // 31 // आगरेमैं मानसिंह जौहरीकी सैली हुती, दिल्ली माहिं अव सुखानंदजीकी सैली है। इहां उहां जोर करी यादि करी लिखी नाहिं, ऐसे भाव आलससौं मेरी मति मैली है। आगरेमैं बड़े उपकारी थे विहारीदास, तिन पोथी लिखवाई तब थोरी फैली है Scanned with CamScanner