________________ आठ वर्ष घाटि जोय कोटि पुव्व आयु होय, लेतना अहार सोय जोर है अनूप // इंद औ फनिंद चंद जच्छ औं नरिंद विंदा तीन काल तास बंदि होत मोखभूप। सर्वज्ञेयको-प्रमान तुच्छ कालमाहिं जान ...ताहि वंदिये सुजान छोड़ि दौरधूप // 7 // करखा छन्द / .. सर्व तिहुँ लोक सु अलोक तिहुँकालके, सहित परजाय निज ज्ञानमाहीं।... देखियो जास परतच्छ जिमि करतलें, तीन हू रेख आंगुरी पाहीं // जासकैं राग औ द्वेष भय चपलता, लोभ जम जरा गद आदि नाहीं। दिली सो महादेव मैं नमों मन वचन तन, दीजियै नाथ मुझ मोक्ष ठाहीं // 8 // कुंडलिया। बीते जाके घातिया, राग दोष भ्रम नास / सुरपति सत वंदत चरन, केवलज्ञान प्रकास // केवलज्ञान प्रकास, भास केवलसुख जाकैं। दरसन जास अपार, सार वल प्रगट्यौ ताकै // गुण अनंत घनरास, आस त्रासा भय जीते। ताकौं वंदों सदा, घातिया जाके वीते // 9 // 1. यह छन्द अकलंकाष्टकके "त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषयं " आदि। लोकका भावानुवाद है। ठप्पय / भरम हरिय मन मरिय, जरिय मद टरिय मदनवल / सकलि फरिय अघ दुरिय, तुरिय गज तजिय सुरथ दल // परम लखिय पर नसिय, चखिय निजरस रस विरचिय / धरम वसिय दुख नसिय, खसिय गद जनम मरण तिये // वसु करम दलन भव भय हरन, त्रिभुवनपतिनुत तुम चरन / पर तुम अभय अखय निरमल अचल, जय जिनवर असरन सरन // 10 // जै जै स्वामी आदिनाथ, मैं तेरा बंदा।। जै जै स्वामी आदिनाथ, काटौ भव फंदा // जै स्वामी आदिनाथ, देवोंके देवा। जै जै स्वामी आदिनाथ, मैं कीनी सेवा // तू जै जै स्वामी आदिजी, मेरी सेवा जानही / तातें मोपै कीजै कृपा, वासा दीजै पास ही // 11 // करखा। -- करम-घनहर पवन, परम निजसुखभवन, -भरमतम रवि मदन,-तपत-चंदा। 1931 कोपगिरि वज्रधर, मान गज हरन हर, कपट वन हर दहन लोभ मंदा // 1 स्फुरायमान हुई। 2 भाग गये। 3 तुरग-घोड़ा / 4 खिसक गये, दूर हो गये। 5 तीन अर्थात् रोग जन्म और मरण। 6 वादल / 7 घर / 4.कामदेवरूपी तापको शमन करनेके लिये चन्द्रमाके समान शीतल / 9 इन्द्र / १०सिंह / 11 आग / Scanned with CamScanner