________________ गाथा-४३-५० 264 परिशिष्टम्-१ मंतम्मि पुव्वसेवा, जइ तुच्छफले वि वुच्चइ इहं ता / मोक्खफले वि उवहाणलक्खणा किं न कीरई सा // 20/43 // एइए परमसिद्धी, जायइ जं ता दढं तओ अहिगा। जत्तम्मि वि अहिगत्तं, भव्वस्सेयाणुसारेण // 20/44 // अह सक्कविरयणाओ, सक्कत्थय नोवहाणमुववन्नं / एयं पि केण सिटुं, जमेस सक्केण रइउ त्ति // 20/45 // सक्कस्स अविरइत्ता, जिणथुई जइ अणेण णुन्नाया। ता तक्कओ त्ति सो वुत्तुमेवमुचियं कहं तम्हा // 20/46 // केवलिणा दट्टणं, उवइट्ठाणं च विरइयाणं च / नवकारमाइयाणं, महाप्पभावोववेयाणं // 20/47 // तिक्कालियमहवा सत्तकालियं सुमरणे निउत्ताणं / जुत्तं चिय उवहाणं, महानिसीहे निबद्धाणं // 20/48 // उवहाणविहीणाण वि मरुदेवाईण सिवगमो दिवो / एवं च वुच्चमाणे तवदिक्खाईण वि निसेहो // 20/49 // इय भूरिहेउजुत्तीजुयम्मि बहुकुसलसलहिए मग्गे / कुग्गहविरहेणुज्जमह महह जइ मुक्खसुहमणहं // 20/50 //