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________________ ( ४६ ) मधुर मिलन हो उदयपुर में, वल्लभ गुरुविजयनेमसूरींद । बाल ब्रह्मचारी थे दोनों, शिष्टाचार मधुर ध्वनि छंद ॥९॥ अनूपचंद मनसाचंद यतिजी, सद्गुरु प्रत्ये भक्ति धरंद । ज्ञान मंदिर करे वर्द्धमान का, उद्घाटन वल्लम मुनींद ॥१०॥ जाति चतुर अरू नाम है रोशन, उदयपुर निवास करंद । गुरु भक्ति जिनको रग-रग में, साथ मनोहर लाभ लहंद ॥११॥ विक्रम ऋषि ऋषि निधि शशि वर्षे, केशरिया भेटे सुख कंद । चैत्र सुदी दशमी दिन रचना, पूजा आदीश्वर जिन चंद ॥१२॥ विद्यालय पुस्तकालय स्थापित, स्थान-स्थान गोड़वाल करंद । गुरु चेले सब विचरण करते, मरुधर का उद्धार करंद ॥१॥ शान्ति वर्द्धमान की पेढ़ी, सोजत में स्थापित करंद । ब्यावर पर सद्गुरु की कृपा, पाठशाला स्थापित करंद ॥१४॥ आतम वल्लभ सूरि समुद्र, सद्गुरुजो उपकार करंद । ऋषभ सद्गुरु भावे पूजत, धूप पूजन टारे दुर्गन्ध ॥१५॥ ॥काव्यम् ॥ भवि जीव बोधक, तत्व शोधक, जिन मताम्बुज भास्करम् । जगत् वल्लभ विजय वल्लभ, युग प्रधान सूरीश्वरम् ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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