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________________ ( ४४ ) ॥ अथ चतुर्थी धूप पूजा ॥ : दोहा : - द्रव्य भाव सौरभमयी, धूप पूजन सुखकार । वल्लभ गुरु को पूजतां, वर्ते जय जयकार | गायकवाड़ के राज्य में, बड़ौदा मशहूर | जन्म भूमि गुरूराज की, सब को होत गरूर ॥ ६ ९ १ ऋषि रस निधि रवि वर्ष में, सुदी वैशाख सुमास । दशमी दिन गुरूवार को नगर प्रवेश उल्लास ॥ • उगणीस साधु साथ में, चार्तुमास बिताय । भाग्योदय ब्रह्मचर्य की, संयम प्रतिभा दिखाय ॥ अठाई का जीमण कर, बंद कराया आप । • जैन संघ उत्कर्ष की योजना कीनी आप ॥ खीमचंद चुन्नीभाई, मामा भाणेज साथ । कावी और गंधार का, संघ चला प्रभु साथ ॥ इक्वीस केरी पूजना, राग रागिनी मांय | प्रभु पूजा से फल मिले, करम सभी कट जाय ॥ सूरत में सब आ मिले, वृद्ध साधु जन पास । ६ ९ १ ऋषि रस निधि शशि षष्ठी को, फागण वदी शुभ सुमास ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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