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________________ ( ४० ) सामैया हो धूमधाम से, सूविर उच्चारो । उच्चारी-उच्चारी वल्लभ आतम पूजारी ॥ पूजन ॥ १४ ॥ आतम वल्लभ सूरि समुद्र, सद्गुरु अणगारी । अणगारी - अणगारी ऋषभ महिमा प्रचारी ॥ पूजन ।। १५ ।। : दोहा : ५ ६ इन्द्रिय रस निधि चन्द्रमा, चातुमास बिताय । रचना गुजरांवाला में, दो पुस्तक लिख पाय || भीम ज्ञान त्रिशिका अरु, विशेष निर्णय खास । ग्रन्थ इक सौ पिचयासी, उर्द्धत देत उल्लास ॥ नगरी जयपुर अति भली, सुन्दर राजस्थान । ओच्छ दीक्षा का हुवे, भवि जन भये गलतान ॥ रौनक पंचमी दिवश की, चैत्र वदी सुखदाय । बीसा ओसवाल कुल का, नाहर गोत्र दीपाय || *अच्छर *मच्छर जोड़ला, दोनों भाई साथ । गुरु वल्लभ दीक्षित करे, धुमधाम के साथ | कोठारी इन्द्राबाई, भक्ति भाव दीक्षा मोच्छब ठाठ का खर्चा करे * पू० आचार्यश्री विजय विद्या सूरिजी, पू० मुनिश्री विचार विजयजी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat अपार । उदार ॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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