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________________ ( ३४ ) ॥ द्वितीय चन्दन पूजा ॥ : दोहा : केशर चन्दन मृगमद, कुंकुम मांही सद्गुरू अँगे पूजिये, आणी भाव बरास । उल्लास ॥ १ ॥ ( चाल- - पूजा करो रे भवि भाव से ) वल्लभ सद्गुरु की पूजा करो रे भवि भाव से ॥ अ ॥ पञ्च नदी पंजाब देश में, अम्बाला मनोहार । विजयानन्द विराजते हैं, साथ मुनि परिवार रे ||१|| वल्लभ सेवा मूर्ति है, चतुर अति होशियार । आतम का करज करते हैं, भक्ति मन में धार रे ||२|| मोती पाणीदार है यह, ओप देऊ सुखकार । आतम इम उच्चारण करता, वल्लभ वारसदार रे ॥३॥ पारवती की " दीपिका " ने, कीना खूब प्रहार | "गप्प दीपिका समीर" रखा, वल्लभ शास्त्राधार रे ||४|| हर्ष विजय गुरू नाम पर इक, हो स्मारक तैयार । लुधियाना स्थापन किया तब, जैनी ज्ञान भण्डार रे ||५|| ૪ ९ १ ऋषि कषाय अंक शशि वर्षे, चातुर्मास सुखार | मालेर कोटला पूरण करते, अध्ययन का विस्तार रे ||६|| आतम वल्लभ पामीया रे, वर्ते जय-जयकार | समुद्र सम गम्भीरा जग में, ऋषभ प्राणाधार रे ||७|| Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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