SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परम प्रभावक सूरीश्वर, शासन थंभ कहाय । सुर नर सब पूजा करे, गुरुदेव गुण गाय ॥ जल · चंदन पुष्पादि अरु, धूप दीप मनोहार । अक्षत नैवेद्य फल लिये, पूजा अष्ट प्रकार ॥ ॥ अथ प्रथम जल पूजा ॥ * दोहा * जल पूजा मल को हरे, विमल भाव गुणकार । गुरु के चरण प्रक्षालते, मिटे भ्रमण संसार ।। [लावणी-चाल-च्यवन कल्याणक अोच्छव करके ] परमेष्ठि पद में मध्ये पद, धारक तारणहारा रे । सूरि पद पूजन कर प्राणी, आतम आनन्दकारा रे |आ। विक्रम ऋषि कर निधि शशि वर्षे, कार्तिक मास सुखारा रे । सूदी दूज दिन नगर बड़ौदा, गुर्जर देश मझारा रे ॥१॥ बीसा श्रीमाल कुल भूषण, श्रावक व्रत धरनारा रे। जैन श्वेताम्बर श्रद्धा संवेगी, तात दीपचन्द प्यारा रे ॥२॥ सती शिरोमणि सद्गुण रमणी, आंखों का उजियारा रे । माता इच्छा कुक्षे प्रगटयो, छगन जग हितकारा रे ॥३|| धन्य मात और धन्य तात ने, घर जन्मे जयकारा रे । पूर्व जन्म की पुण्याई संग, प्रगटे जग अवतारा रे ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy