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________________ ( २० ) आज भी जगह-जगह विदुषी साध्वियाँ अपनी विद्वता से पुरुष और स्त्रियों में धर्म प्रचार का कार्य कर रही हैं। तिथि चर्चा जैसी सामान्य बातों में आज कतिपय साधुओं में क्लेश उत्पन्न कर रखा है, आपने इस विषय में फरमाया कि पर्व तिथि की आराधना के लिए तथा प्रवज्या-प्रतिष्ठादि शुभ धार्मिक कार्यों के मुहूर्तादि देखने के लिये आपने अभी तक जैनेतर पंचांगों पर आधार रखते आये हैं परन्तु इन पंचांगों का गणित स्थूल होने के कारण उसमें बतलाये गये विषयों का आकाश के प्रत्यक्ष दर्शन के साथ मेल नहीं बैठता है तथा मुहूर्तादि का सत्य समय निभता नहीं। ऐसी परिस्थिति में किसी भी प्रकार निभाने योग्य न होने से मेरे शिष्य मुनिश्री विकास बिजय ने प्राचीन तथा अर्वाचीन खगोल गणित का गहरा अभ्यास कर आकाश के साथ प्रत्यक्ष मेल मिलता रहे ऐसा श्री महेन्द्र जैन पचाङ्ग तैयार किया है और उसका अन्तिम प्रकाशन उन्नीस वर्ष से होता आ रहा है। हमको कहते आनन्द होता है कि इस पंचांग का खगोल विद्या विषयक सूक्ष्म ज्ञान धारण करने वाले प्रो० हरिहर प्राणशंकर भट्ट, श्री गोविन्द एस-आप्टे तथा अन्य अनेक दूसरों विद्वानों ने हार्दिक सत्कार किया है तथा इस विषय में ज्ञान धराने वाले जन्मभूमि आदि पत्रों ने भी इसको भावभरी अञ्जलियाँ अर्पित की है तथा व्यवहार में इसका उपयोग करने की प्रेरणा दी है। जैन समाज की परिस्थिति का अवलोकन करके हम इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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