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________________ ( १८ ) हमारे भला ! साधु को आराम काहे का । इस देह का समाज कल्याण तथा धर्म प्रचार के लिए अन्तिम समय तक जितना कस लिया जाये उतना लेना है और आप अन्तिम समय तक इस प्रकार अनेक शुभ कार्य में प्रवर्त रहे । प्रातः चार बजे से नवकार मन्त्र तथा चौबीस तीर्थकरों का स्मरण, जाप, प्रतिक्रमण, प्रतिलेहना, शौच, ( स्थंडिल ), वर्द्धमान विद्या, और सूरि मन्त्र का पाठ, नव स्मरण आदि स्रोत्र, देव दर्शन, तथा पञ्चकखान पारणा वगैरह सबेरे ८|| बने तक करने में संलग्न रहते थे । तत्पश्चात् प्रातः ८|| बजे से ११ || बजे तक व्याख्यान आदि, दर्शनार्थ आये हुए सज्जनों से वार्तालाप आदि, उसके बाद १ बजे तक आहार- पानी तथा विश्राम करते थे । तदन्तर साधुओं को वांचना देना, आए हुए पत्रों के उत्तर आदि लिखना या लिखवाना, धार्मिक व सामाजिक कार्यों की चर्चा तथा चिन्तन करते थे। बाद में आवश्यकतानुसार आहार पानी के बाद शाम को प्रतिलेहना, कल्याण मन्दिर स्त्रोत्र का पाठ, प्रतिक्रमण, संथारा पोरसी । तदुपरान्त शिष्य मंडल अथवा आगन्तुकों से विविध समाजोत्थान विषयों पर विचार-विनिमय, करते थे और रात्रि को निद्रा ग्रहण करने तक समाज कल्याण तथा धर्म प्रचार की अनेक योजघड़ते ही रहते थे । पानी, औषधि आदि सहित गुरुदेव प्रतिदिन सात द्रव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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