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________________ ( छ ) करते, योग देते, और अपने जीवन को संबल बनाते । हर मनुष्य को बिना भेद-भाव के शिक्षा मिले, चारित्र बल बढ़े साधना पनपे तथा कार्य क्षमता को पाकर मनुष्य स्वावलम्बी बने आदि-आदि उद्देश्यों का साकार चिन्तन आप श्री के उपकारमय जीवन का प्रतीक रहा है। संस्थाओं द्वारा मनुष्य जाति का और आत्म साधन द्वारा अपना जो कल्याण किया वह स्व को पर में विलीन कर अनैकान्तिक जीवन का स्रोत बना। ___कर्म भूमि में पैदा होने वाले मनुष्य का क्या कर्त्तव्य है ? यह कर्तव्य केवल अपने लिये ही नहीं किन्तु धर्म, समाज, और देश के लिये भी हमें कुछ करना है-यह बालोक, आचार और विचार की समन्वित पद्धति में आचार्य श्री ने समय-समय पर जो दिया है, वह कोरा पठनीय ही नहीं किन्तु करणीय भी है। आचार्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी ने जैनेतर लोगों को भी आकर्षित किया, यहाँ तक कि हिन्दुओं के अतिरिक्त मुसलमान भाई भी उनकी भावभरी गहराई को देख उनके प्रभाव में पूर्णतः आने लगे। और यथा समय उनके कामों में तथा योजनाओं में अपना हार्द भरा सहकार करने लगे। इसलिये यह कहना अतिरंजित नहीं हो सकता कि अब ये आचार्य ही नही अपितु लोगों के हृदय सम्राट् बन गये और अपनी योग्यता एवं सौहार्द से वे तीर्थंकरों की पाट परम्परा के आचार्य कहलाये । “यथा नाम तथा गुण" वाली युक्ति चरितार्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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