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________________ ( ७७ ) आरती ॐ जय जय गुरू राया, स्वामी सद्गुरू महाराया। आरती करूँ हितकारी २, शुद्ध मन वच काया ॥ अ॥ ज्ञान दरश चारित्र सोहे, तप गुण पद पाया ॥ स्वामी तप०॥ माया मोह ग्रसित जोवों को २, धर्म बोध दाया | ॐ ||१|| विजयानन्द सूरि पट्टधारी, वल्लभ सूरि राया ॥ स्वामी वल्लभ ।। कलिकाल कल्पतरू २, कीर्ति जग छाया ॥ ॐ ||२|| अज्ञान तिमिर तरणि गुरु जग में शिक्षण फैलाया ।। स्वामी शिक्षण || भारत दिवाकर गुरु २, ज्योति प्रगटाया ॥ॐ ||३| मरूधर राट पंजाब केशरी प्रसिद्ध कहलाया ॥ स्वामी प्रसिद्ध । जंगम युग प्रधान २, मंगल फल दाया ॥ॐ ||४|| हिन्दू मुश्लिम ईशाई मन श्रद्धा अधिकाया | स्वामी श्रद्धा ॥ पारसी, सिख, जैनी सब २, पूजे गुरू पाया ॥ॐ ॥॥ सूरि सम्राट सभी गच्छ माने, भक्ति उम्हाया ।। स्वामी भक्ति ।। जिसने ध्यान लगाया २, वांछित फल पाया ॥ ॐ ॥६॥ वल्लभ गुरू की आरतो करतां, आनन्द मन छाया ॥ स्वामी आ० ।। वल्लभ सूरि समुद्र २, ऋषभ गुण गाया || ॐ ॥७॥ -octopooShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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