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________________ ( ७३ ) :. • रूपा सोना पुष्प उच्छाली, गिन्नी रूपया भारी रे । बम्बई नगरी उमड़ पड़ी थी, कहतां न आवे पारी रे ||5|| तेरापंथी तुलसी स्वामी, आचारज पद धारी रे। आकर श्रद्धांजलि देवे, प्रशंसा करे भारी रे ||९|| पंडित रत्न मुनि सुशील की श्रद्धा अनुपम भारी रे । प्रशंसा सद्गुरू की करता, साधु पाद विहारी रे ||१०|| देशाई मुरारजी देता, श्रद्धांजलि सुखकारी रे। • नगर पालिका धारा सभा के सभ्य बने सहकारी रे ॥११॥ 3 साकरचन्द मोतीलाल, राधनपुर परिवारी रे । दहन समय लाभ उठायो, लक्ष्मी खर्ची सारी रे ||१२|| • भारत भर के जैनी साधु, देव वंदन किया जारी रे । जिसने देव वंदन नहीं कीना, सो मति मूढ़ गंवारी रे ||१३|| भायखाला गुरु मन्दिर बनता, पूजे सब नर नारी रे। वर्ण अठारह दर्शन आवे, भक्ति भाव मंभारी रे ||१४|| प्रसन्नचन्द कोचर की भक्ति, कहता न आवे पारी रे। पालीताना विहार बनावे, पार्श्व वल्लभ भारी रे ||१५|| थान थान गुरू चरण विराजे, मूरति मोहन गारी रे। भक्ति भाव से पूजन करता, अन्न धन लक्ष्मी सारी रे ||१६|| आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारी रे । गुरु वल्लभ का पूजन करतां, फल पूजा फलकारी रे ||१७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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