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________________ (३९) पिता देवशर्मा मलो, मात जयंती जास। उतराषाढा जनमिया, चारवेद अभ्यास ॥२॥ अँटवेद घरमें रहे, छद्मस्थे नव वास । वर्ष एकविस केवली, वीर चरणकज वास ॥३॥ नारक परलोके नहीं, संशय वासित चीत । वीर प्रभू मनमें धरी, आये सज्जन रीत ॥४॥ मधुर वचनसे भाखिया, वीर विभू जिनराज । अकंपित स्वागत तुमे, संशय छेदनकाज ॥ ५॥ सोहनी । सिद्धगिरि तीरथपर जानाजी-चाल । प्रमुवीर वचन सुख दानाजी-अचंली ॥ प्रेत्य नरकमें नहीं है नारक, __ वेद वचन फरमानाजी-प्रभु० ॥१॥ नारक वो होता है उससे, अन्न शूद्रका खानाजी-प्रमु० ॥२॥ वेद वचनसे नारक सत्ता, ___ संशय हेतु वखानाजी-प्रभु० ॥३॥ मेरु सम नहीं शाश्वता नारक, __ पापी नरकमें जानाजी-प्रमु० ॥४॥ अथवा नारक मरके नारक, होवे नहीं परमानाजी-प्रमु०॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035302
Book TitleVeer Ekadash Gandhar Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1928
Total Pages42
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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