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जिनपवीरगिरागतकल्मषं, गणधरं श्रुतरत्नधरं स्तुवे ॥ १ ॥
मंत्र ।
ॐ ह्रीं, श्रीं, परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, सर्वलब्धिनिधानाय, श्रीमते गौतमगणधराय, जलादिकं यजामहे स्वाहा ।
॥ अथ द्वितीय श्री अग्निभूति गणधरपूजा ॥
॥ दोहा ॥ अग्निभूति रिख कृत्तिका, इंद्रभूति लघु भ्रात । गाम गोत्र वही देश है, वही मात अरु तात ॥ १ ॥ छै चली गृहवास में, बौर वरस मुनि राय । सोर्ले वरस जिन केवली, वेद ऋषि कुल आय ॥ २ ॥ वाद कियो सह वीरके, बंधु गयो मुझ हार । यह मुझ मन माने नही, कीनो यह निरधार ॥ ३ ॥ जाय हराऊँ वीरको, ले आऊँ निज वीर । मानकरी परिवार सह, आयो प्रभुके तीर ॥ ४ ॥ वीर कहे सुख शांतिसे, आयो गौतम भाय । अग्नि मूर्ति तुम कर्मकी, शंका मनमें थाय ॥ ५ ॥ लावनी- देश - त्रिताला ।
सुनो अग्निभूति तुम वीर प्रभु कहे ज्ञानी । विन कर्म जगत वैचित्र्य कहो किम जानी । अंचली ।
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