SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२५) जिनपवीरगिरागतकल्मषं, गणधरं श्रुतरत्नधरं स्तुवे ॥ १ ॥ मंत्र । ॐ ह्रीं, श्रीं, परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, सर्वलब्धिनिधानाय, श्रीमते गौतमगणधराय, जलादिकं यजामहे स्वाहा । ॥ अथ द्वितीय श्री अग्निभूति गणधरपूजा ॥ ॥ दोहा ॥ अग्निभूति रिख कृत्तिका, इंद्रभूति लघु भ्रात । गाम गोत्र वही देश है, वही मात अरु तात ॥ १ ॥ छै चली गृहवास में, बौर वरस मुनि राय । सोर्ले वरस जिन केवली, वेद ऋषि कुल आय ॥ २ ॥ वाद कियो सह वीरके, बंधु गयो मुझ हार । यह मुझ मन माने नही, कीनो यह निरधार ॥ ३ ॥ जाय हराऊँ वीरको, ले आऊँ निज वीर । मानकरी परिवार सह, आयो प्रभुके तीर ॥ ४ ॥ वीर कहे सुख शांतिसे, आयो गौतम भाय । अग्नि मूर्ति तुम कर्मकी, शंका मनमें थाय ॥ ५ ॥ लावनी- देश - त्रिताला । सुनो अग्निभूति तुम वीर प्रभु कहे ज्ञानी । विन कर्म जगत वैचित्र्य कहो किम जानी । अंचली । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035302
Book TitleVeer Ekadash Gandhar Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1928
Total Pages42
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy