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________________ (१८) कहकर पाँच दोहे जो पूजाकी आदिमें हैं वे चैत्यवंदनके स्थानमें पढ़ने बादमें जं किंचि. नमुत्थुणं० जावंति चेइयाई ० जावंतकेवि ० नमोर्हत् • कहकर स्तवनके स्थानमें पूजाकी ढाल पढ़लेनी । बादमें जयवीयराय • अरिहंतचेइयाणं ० अन्नत्थ० एक नवकार मंत्रका काउस्सा | पीछे थई के स्थान में “सुरनरेश्वर पूजित पत्कजं" इत्यादि काव्य पढ़ लेना । पीछे “ गौतमस्वामिसर्वज्ञाय नमः " यह पाठ ११ बार कहना पीछे ११ नवकार गिनने । फिर इच्छामि खमासमणो ० इच्छाकारेण संदिसह भगवन् श्रीइंद्रभूतिगौतमस्वामि - गणधर आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ० ११ लोगस्सका काउस्सम्ग करना । पीछे खुल्ला लोग्गस्स ० पीछे " इच्छामि खमासमणो ० अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं | यह प्रथम गणधर देववंदन विधि समझना । इसी तरह सर्व गणधर देववंदन समझ लेना । केवल गणधर महाराजका नाम बदल देना । ११ गणधर देवोंके नाम | १ श्री इंद्रभूति ( गौतम स्वामी ) । २ श्रीअग्निभूति । ३ श्रीवायुभूति । ४ श्री व्यक्तस्वामी | ५ श्रीसुधर्मास्वामी । ६ श्रीमंडित स्वामी । श्रीमौर्यपुत्र स्वामी । ७ ८ श्री अकंपित स्वामी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035302
Book TitleVeer Ekadash Gandhar Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1928
Total Pages42
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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