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की गई है। इस पूजाके बनानेके लिये प्रतापगढ़से सद्गत पंन्यासनी महाराज १०८ श्री चतुर विजयजाके शिष्य मुनिश्री दुर्लभ विजयजी तथा घीयाजी श्रीयत लक्ष्मीचंदजी आदिके प्रार्थना पत्र आनेपर रचयिताने यथाशक्ति अपना ज्ञानामृत हम लोगोंतक पहुँचानेकी कृपा की इसलिए रचयिता और प्रेरक सबको धन्यवाद देना उचित समझा जाता है।
प्रथम पत्र प्रेरक की तरफ से संवत् १९८१ माघ सुदि ७ का लिखा तारीख १-२-१९२५ का रवाना हुआ ता० ४-२-१९२५ को मुकाम गुजरांवालामें आचार्य महाराज श्री १०८ श्री विजयवल्लभ सूरि जी की सेवामें पहुँचा जिस की नकल यह है ।
श्रीमान् जैनाचार्य विजयवल्लभ सूरिजी महाराज साहिब ।
प्रतापगढ़से मुनि दुर्लभविजयकी सविनय वंदना सविधि वंचसी । अत्र कुशलं तत्रास्तु-सविनय प्रार्थना के-गणधर श्री गौतम स्वामी जीकी पूजा नहीं है सो आप कृपा करके शुद्ध हिन्दीमें पूजा दीपोत्सव प्रथम बन जाय तो अच्छा है क्यों कि वाक्य रचना व गुण स्मरण व सिद्धांत निर्देश आपकी कवितामें विशेष माधुर्यता है, इस हेतुसे यह नम्र प्रार्थना की है सो स्वीकार करके शीघ्र सूचित करेंगे। इस कृतिसे गच्छ समाजमें महान् पुण्य का कारण होगा। अत्रोचित कार्य लिखना । सं० १९८१ माघ शु. ७ हस्ताक्षर लक्ष्मीचंद घीयाकी बंदना वंचसी। ___ ली. लक्ष्मीचंद घीयाकी वंदना अवधारियेगा कृपापत्र लिखाइयेगा
अभी मैं प्रतापगढ़ ही हूँ ( मालवा ) राजपूताना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com