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श्रीमत् कुन्दकुन्दाचार्य की वर्धमान-वन्दना
एस सुरासुरमणु सिदव दिदं, धोदघाइ कम्ममलं । पणमामि वडढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं ॥१॥
श्रीमत् कुन्दकुन्दाचार्यः प्रवचनसार पृ० १
भवनवानी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी चारों प्रकार के देवों के इन्द्र तथा चक्रवर्ती जिन को भक्ति पूर्वक वन्दना करते हैं
और जो ज्ञानावर्णी, दर्शनावर्णी, मोहनी और अन्तराय चारों घातिया कर्मों को काट कर अनन्तानन्त ज्ञान, अनन्तान्त दर्शन, अनन्तानन्त सुख और अनन्तानन्त शक्ति को प्राप्त किये हुये हैं और धर्म तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थंकर भगवान् श्री वर्धमान हैं, मैं उनको नमस्कार करता हूँ।
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