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श्री गुरु नानकदेव का अहिंसा-प्रचार
जब कपड़ों पर खून की छींट लग जाने से वे नापाक हो जाते हैं तो जो मनुष्य खून से लिप्त मांस खाते हैं, उनका हृदय कैसे शुद्ध और पवित्र रह सकता है' । ६८ तीर्थों की यात्रा से भी इतना फल प्राप्त नहीं होता जितना हिंसा और दया से होता है । जिस के हृदय में दया नहीं वह महा विद्वान् होने पर भी मनुष्य
१. जे रत लगे कपड़े, जामा होवे पलीत | जे रत पीव मानुषा, तिन क्यों निर्मल चित ॥
—बाबा नानक बार मास मांक, महल्ला १ पृ० १४० ।
२. अड़सठ तीरथ सकल पुन जीवन दया प्रधान । जिसनू देवे दया कर सोई पुरुष सुजान ॥
-माझ महल्ला ५ बारा माह (माघ माह)
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