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________________ महापाप है' । महाभारत के अनुसार, “रात्रि भोजन करने वाले का जप, तप, एकादशी व्रत, रात्रि जागरण, पुष्कर - यात्रा तथा चान्द्रायण व्रतादि निष्फल हैं २ " । इस लिये वैज्ञानिक, आयुर्वेदिक, धार्मिंक सब ही दृष्टि से रात्रि भोजन करना और कराना उचित नहीं है । ७- हिंसा का त्यागः मांस, शराब, शहद, अभक्षण, बिन छाना जल तथा रात्रि भोजन के ग्रहण करने में तो साक्षात् हिंसा है ही, परन्तु महर्षि पातञ्जलि के अनुसार, “यदि हमारी वजह से हिंसा हो तो स्वयं हिंसा न करने पर भी हम हिंसा के दोषी हैं " इस लिये ऐसी हिंसा का भी त्याग किया जावे, जिसको हम हिंसा ही नहीं समझते: (क) फैशन के नाम पर हिंसा - सूत के मजबूत कपड़े, टीन के सुन्दर सूटकेस, प्लास्टिक की पेटी, घड़ी के तस्मे, बटवे आदि के स्थान पर रेशमी वस्त्र और चमड़े की वस्तुएँ खरीदना | (ख) उपकारिता के नाम पर हिंसा - साँप, बिच्छू, भिरद आदि को देखते ही डण्डा उठाना, चाहे वह शान्ति से जा रहे हों या तुम्हारे भय से भाग रहे हों । महात्मा देवात्माजी के शब्दों में जहरीले जानवरों को भी कभी-कभी पृथ्वी पर चलने का अधिकार है इस लिए अपने जीवन की रक्षा करते हुए उनको शान्ति से न जीने देना । १ श्रस्तंगते दिवानाथे, श्रपां रुधिरमुच्यते । अन्न ं मांससमं प्रोक्त ं मार्कण्डेय महर्षिणा । -मार्क. पु. अ. १३ श्लो. २ २ मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कन्दभक्षणम् । ये कुर्वन्ति वृथा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥ -महाभारत वृथा एकादशी प्रोक्ता वृथा जागरणं हरे | तथा च पुष्करी यात्रा वृथा चान्द्रायणं तपः ॥ 3 Personally to kill creatures, to cause creatures to be killed by others and to support killing are three mainforms of Hinsa —Patanjali the Yogdarshan 2/34. ४ This book's P, 91. ५१८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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