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________________ श्री रामचन्द्र जी की अभिलाषा जिन' ( जिनेन्द्र ) के समान वीतराग होने की थी । नाहं रामो न मे वाञ्छा भावेषु न च मे मनः । शांतमासितुमिच्छामि स्वात्मनीव जिनो यथा || - योगवासिष्ठ वैराग्य प्रकरण सर्ग १५ पृष्ठ ३३ मैंन राम हूँ और न मेरी वाञ्छा संसारी पदार्थों में है । मैं तो जिनेन्द्र भगवान के समान अपनी आत्मा में वीतरागता और शान्ति की प्राप्ति का अभिलाषी हूँ । 1 ' श्री रामचन्द्र जी की यह उत्तम भावना उनके हृदय की सच्ची आवाज़ थी, राज पाट को लात मार कर चारण ऋद्धि के धारक स्वामी सुव्रत नाम के जैन मुनि से जिन दीक्षा धारण कर वे जैन साधु हो गये और केवल - ज्ञान प्राप्त करके जिन (जिनेन्द्र ) हुये और संसार को जैन धर्म का उपदेश देकर तँगी गिरि पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया । इसी कारण जैन भगवान् महावीर के समान श्री रामचन्द्र जी की भी भक्ति और वन्दना करते हैं७ । १. (क) हिन्दी विश्व कोश (कलकत्ता) जिन = जिनेश्वर, जिनेन्द्र, जैनियों के उपासक देवता । (ख) हिन्दी शब्द सागर कोश (काशी) जिन = जैनियों के पूज्य देव । भास्कर ग्र० नं० २ संस्कृत हिन्दी कोश (मेरठ) जिन = जैन तीर्थंकर 1 शब्दकल्पद्र ुम कोश. जिन = अर्हन्त । (ग) (घ) (ङ) शब्दार्थ चिन्तामणि कोश. जिन = जैनियों का देवता । २. श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण जी तथा सीता जी का जीवन और उनके भव आदि जानने के लिए देखिये पद्मपुराण पर्व १०६ पृष्ठ ६२२ । ३. पद्मपुराण भाषा, पर्व ११६ । ४-५, पद्मपुराण पर्व १२३ पृष्ठ ६८१ । ६. पद्मपुराण पर्व १२३ पृष्ठ ६८६ । ७. पद्मपुराण पर्व १०६ पृष्ठ ६२२ । [ ५३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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