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________________ गौरी से महा घमासान का युद्ध किया था । महाराजा विजयसिंह के समय सन् १७८७ में मरहटों ने अजमेर पर चढ़ाई कर दी और मरहटा सरदार डी० बाइन ने अजमेर को चारों ओर से घेर लिया तो वहाँ के गवर्नर जैनधर्मानुयायी' धनराज सिन्धी ने इस वीरता से युद्ध किया कि उनके पाँव अजमेर में न जम सके । २७-राजपूताने के राजा तो जैनधर्म के इतने अधिक अनुरागी थे कि मेवाड़ राज्य में जब-जब भी किले की नींव रक्खी जाती थी, तब-तब ही राज्य की ओर से जैन मन्दिर बनवाये जाने की रीति थी । श्रोझाजी के शब्दों में मेवाड़ राज्य में सूर्य छिपने के बाद अर्थात् रात्रि भोजन की आज्ञा न थी । टाड साहब का कथन है, "कोई भी जैन यति उदयपुर में पधारे तो रानी महोदया श्रादरपूर्वक राज-महल में लाकर उनके ठहरने और आहार का प्रबन्ध करती थी। चौहान नरेश अल्हणदेव के बनवाये हुए जैन मन्दिरजी को भी इन्होंने श्री वर्द्धमान महावीर की पूजा और भक्ति के लिये दान दिये । १६४६ ई० के आज्ञापत्र से प्रकट है कि बरसात में अधिक जीवों की उत्पत्ति होजाने के कारण इन्हाने चातुर्मास के निरन्तर चार महीनों तक तेल के कोल्हू, ईटों के भट्टे, कुम्हार के पजावे और शराब की भट्टी आदि हिंसक कार्यों को क़ानून द्वारा बन्द कर दिया था । चित्तौड़ में ७० फीट ऊँचा १-२ जैनवीरों का इतिहास और हमारा पतन, पृ० २३४-२३५ । ३ राजपूताने के जैनवीरों का इतिहास, पृ० ३३६-३४० । ४ अोझा जी द्वारा अनुदित टाड राजस्थान, जागीरी प्रथा, पृ० ११ । ५ रा०रा० बासुदेव गोविन्द प्राप्टेः जैनधर्म महत्त्व (सूरत) भा. १, पृ. ३१ ६ Digambar Jain (Surat) Vol. IX, P. 72 E. Grant dated 1649 A. D. engraved on pillars of stones in the towns of Rasmi and Bakrole illustrate the scrupulous observances of the Rana's house towards Jains, where, in compliance with their peculiar, doctrine, the Oil Mills and the Potter's Wheel suspend their revolutions for the 4 months in the year (rainy season). – Digambar Jain, Vol. IX. P. 72 E. [ ४८१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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