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________________ 3 ૪ अधिकारी होगा । मुञ्ज के खेत से मिलने के कारण उन्होंने इसका नाम मुञ्ज रखा। कुछ समय बाद उसकी रानी रत्नावलि के भी एक पुत्र उत्पन्न हो गया, जिसका नाम उन्होंने सिन्धुलकुमार रखा, परन्तु बचनों के कारण इन्होंने राज्य मुञ्ज को ही दिया और अपने असली पुत्र सिन्धुल को युवराज्य बनाकर स्वयं जैनाचार्य श्री भावसरम जी से दीक्षा लेकर जैन साधु हो गये थे । महाराजा मुञ्ज (६७४-६६५) बड़े प्रसिद्ध और जैनधर्मी सम्राट थे । जैनाचार्य श्री महासैन और श्री अमित गती तथा जैनकवि धनपाल का इन पर अधिक प्रभाव था* महाराजा सिंधुल (६६५-२०१८७ विश्वस्त रूप से जैन धर्मो थे । इन्होंने जैनधर्म को खूब फैलाया और जैन मुनियों और जैन विद्वानों का बड़ा सन्मान किया, इनके शुभचन्द्र, भर्तृहरि और भोज नाम के तीन पुत्र थे" शुभचन्द्र तो जैनधर्म के इतने श्रद्धानी थे कि जैनाचार्य श्री धर्मधुरेन्द्र जी से दीक्षा ले बचपन में ही जैनसाधु होगये थे । भर्तृहरिजी भी हिंसा धर्मी थे । परंतु रसायन की लालसा में यह जटाधारी साधु हो गये थे और कठोर तप से ऐसी रसायन बनाने की विद्या प्राप्त करली जिससे लोहा सोना बन जाय । अपने भाई को नग्न मुनि देखकर भर्तृहरि जी रसायन लेकर शुभचन्द्रजी के पास गये और कहा कि अब नग्न रहने एवं तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है, मैंने ऐसी रसायन बनाली है जिस से लोहा सोना हो जाये । शुभचन्द्र जी ने कहा, "यदि स्वर्ण की आवश्यकता थी तो राज-पाट क्यों छोड़ा था ? क्या वहां हीरे-जवाहरात स्वर्ण आदि की कुछ कमी थी ? आत्मिक शान्ति और सच्चा सुख त्याग में है परिग्रह में नहीं" । उन्होंने अपने पांव का अंगूठा दबाया तो जिस पर्वत पर तप कर रहे थे वह १-५_SHJK & Heroes P. 87, Digamber Jain, vol. P. 72. ६-६ पं० विनोदीलाल : भक्ताम्बर टीका ४६८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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