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________________ Hiean Tsang भारत में आये तो उन्होंने इनके राज्य में जैन धर्म की प्रभावना देखी' । महाराजा विनयादित्य (६८०-६६६ई.) और विजयादित्य (६६६-७३३ ई०) ने अर्हन्त देव की पूजा के लिये जैनमन्दिरों को दान दिये और जैनपुजारी श्री उदेदेव जी का सम्मान किया२ ! विजयादित्य के पुत्र विक्रमादित्य द्वि० (७३३७४६ ई०) ने जैन मन्दिरों की मरम्मतें कराई और जैनधर्मकी प्रभावना के लिये दान दिये । अरिकेसरी भी जैन धर्म के भक्त थे । इनके सेनापति और राजमन्त्री प्रसिद्ध जैन कवि पम्प थे जो आदि पम्प के नाम से भी प्रसिद्ध थे । इन्होंने ६४१ ई० में पम्प-रामायण रची थी । “आदिपुराण और भारत" भी इन्हीं की रचना है । ___पूर्वीय चालुक्यवंशी सम्राट् विष्णुवर्द्धन तृ० ने जैनाचार्य श्री कालीभद्र जी को जैन धर्म की प्रभावना के लिये दान दिये थे। कुब्ज विष्णुबर्द्धन की रानी जैन धर्म में दृढ़ विश्वास रखती थी इसने जैन धर्म की प्रभावना के लिये गाँव भेंट कराये। महाराजा अम्म द्वि० ने जैन मन्दिरों और जैन धर्म की प्रभावना के लिये दान दिये । इनके सेनापति दुर्गराज इतने महायोद्धा थे कि उनकी तलवार देश-रक्षा के लिये हमेशा म्यान से बाहर रहती थी । ये महायोद्धा इतने दृढ जैन धर्मी थे कि इनको जैन धर्म का स्तम्भ leanings towards Jainism and patronised Jain poet Ravikirti. He constructed Jain temple at Alihole and Fulakesin II gave a grant for it. Some H.J.K. &HP 65 १, Jainism & Karnataka Culture. P. 21 . २ Ind, Ant. XII. P. I12, Some H. J. K& Heroes P. 67 ३. Fleet, S & O.C. Inscription, Ind. Ant. VII. 111. ४-६. संक्षिप्त जैन इतिहास भाग ३ खण्ड ३ पृ० २६ व १५६. 19-€ Epigraphical Report Madras cited by Roa in Studies s'I. J. II 20-25, Also Jainism & K. Culture, P. 27. १०. Ep Ind. IX.56, Some HJK & H,66. ४५४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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