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________________ ४. 'बैरीकुलकाल-दण्ड' बारापुर के किले में त्रिभवन वीर को मारने में मिली। ५. "भुज-मातण्ड' राजा काम के किले में युद्ध करके डाँवराजा, बास, सीवर और कुनकादि पर विजय प्राप्त करने पर मिली। ६ 'समर-परशुराम' जो महायोद्धा गङ्गभट्ट को मारने पर मिली । ७. 'सत्य-युधिष्टर' हँसी में भी भूठ न बोलने के कारण मिली' । हायसल नरेश विष्णुवर्द्धन के महायोद्धा सेनापति गङ्गराज जैन थे। इन्होंने चोलों को हराया, गगनमण्डल को वश किया। चालुक्या सेना का जीता और तलकाड़, कोंगु, चोगिरी आदि को विजय किया । श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं० ४५(१११७ ई०) से सिद्ध है कि जब इन की फौज चारो तरफ से घिर गई और रसद आने का रास्ता टूट जाने पर सेना भूखी मरने लगी तो जैन वीर गङ्गराज 'जाने दो' कहते हुये जान की परवाह न करके घोड़े पर चढ़ रात को ही सरपट दौड़े हुए शत्रुओं की सेना में नंगी तलवार लेकर घुस गये और इको बक्की सेना को भयभीत बना कर उनको सारी रसद लाकर अपने सम्राट को भेंट कर दी। सम्राट बड़े खुश हुए और कहा कि मांग क्या मांगता है ? वीर गङ्गराज ने अपना स्वार्थ नहीं साधा, बल्कि परमार्थ सिद्धि के लिये जिन मंदिर में पूजा के लिये गांवों का दान कराया। गुजरात के बघेलवंशी के सम्राट 'वीरधवल' के सेनापति वस्तुपाल थे। तेजपाल इनके भाई थे। ये दोनों तलवार के धनी जैन धर्मी थे । संग्रामसिंह ने खम्बात पर चढ़ाई कर दी तो ये दोनों अहिंसाधर्मी वीर इस वीरता से लड़े कि संग्रामसिंह को रणभूमि से भागना कठिन हो गया। देवगिरी के यादववशी राजा सिंहन ने १. हमारा पतन, पृ० १०६ । मद्रास व मैसूर के जैन स्मारक पृ० २४० । २ बीर (जैन वीरांक) वर्षे ११, पृ० ८७ । जैन शिलालेख संग्रह पृ० १४५ । ३. अयोध्याप्रसाद गोयलीय हमारा पतन पृ० १३७-१३८ । [४२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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