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________________ बिम्बसार की मृत्यु और उसके सेनापति जम्बूकुमार के जैन साधु हो जाने पर ईरानियों ने ईस्वी सन् से ४२५ साल पहले फिर भारत पर आक्रमण करके उसके पश्चिमी देश जीतने लगे तो जैन सम्राट् नन्दीवर्धन उनसे इस वीरता से लड़े कि ईरानियों को रणभूमि छोड़ कर भारत से लौटना पड़ा' । पारम्यानृप ने नक्षशिला के पास अपना पाँव जमा लिया था परन्तु इसी अहिंसाधर्मी नन्दीवर्धन ने उसका भी अन्त करके भारत को स्वाधीन रखा। ईस्वी सन् से ३५० साल पहले यूनानी सेनापति शैल्यूकस ने भारत पर हमला कर दिया और पंजाब में घुला चला आया तो अन्तिम श्रतकेवलि जैनाचार्य श्री भद्रबाहु जी के शिष्य जैन सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य इस वीरता से लड़ा कि हरात, काबुल, कन्धार और बिलोचिस्तान चारों प्रान्त देकर शैल्यूकस को चन्द्रगुप्त से सन्धि करनी पड़ी । सिकन्दर महान् अनेक हिन्दू राजाओं को जीतता हुआ भारत में घुस आया तो उसको रोकने वाले भो यही जन सम्राट चन्द्रगुप्त थे । ईस्वी सन् से १८४ साल पहले यूनानी बादशाह दमत्रयस (Greek King Demetrius) अनेक राजाओं को जीतता हुआ मथुरा तक घुस आया और सम्राट् पुष्शमित्र उससे सन्धि करने गया तो जैन सम्राट् खारवेल से अपना देश पराधीन होते न देखा गया, तुरन्त मुकावले को आ डटा और इस वीरता से लड़ा कि उन्हें भारत छोड़कर उलटे पाँव भागना पड़ा । विद्वानों का कथन है कि ऐसे भयानक समय में भारत की स्वतन्त्रता को स्थिर रखने वाले जैन सम्राट् खारवेल ही थे, जो इस महा विजय के कारण भारत नेपोलियन के नाम से प्रसिद्ध हुए। १. Journal of Bihar & (Orissa Research Society, Vol. P. 77. २-३. Smith: Early History of India, PP. 45. 8. Journal of B. & 0. Rese-rch Societs. Vol. XIII P, 228. ५-६. वीर, वर्ष ११ पृ० ६२ व संक्षिप्त जैन इतिहास भा० २ खण्ड २ पृ० ३६.५६ । । ४२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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