SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म और arat जैन धर्म का नामकरण ही वीरता का संचालक है । यह जीतने वालों का धर्म ( Conquering Religion ) है, जिसने मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करली, जिसने मोहममता पर काबू पा लिया, जिसने कर्मरूपी शत्रुओं को जीत लिया ऐसे महाविजयी ही तो जिन (जिनेन्द्र ) कहलाते हैं और उनकी विजय- घाषणा ही जिन धर्म है । जिसने संसारी भोग-विलास को वश कर लिया उससे बड़ा वीर संसार में कौन * ? 1 . जैन धर्म तो जैनी मानता ही उसको है, जो सम्यग्दृष्टि हो; सम्यग्दृष्टि वह है जो निःशङ्क हो ६; निःशङ्क वह है जो निर्भय हो " और जो धर्म मृत्यु तक से निर्भय होने की शिक्षा दे वह कायरों का धर्म कैसे कहा जा सकता है ? सरदार पटेल के शब्दों में- " जैन धर्म वीर पुरुषों का धर्म है "" । कहा जाता है कि जो धर्म एक कीड़ी तक को मारना भी पाप बताता है वह वीरों का धर्म कैसे हो सकता है ? ऐसा कहने वालों जैन धर्म के अहिंसातत्त्व को भलीभाँति नहीं समझा। राग-द्वेष रूपी भावों का होना ही हिंसा है, चाहे वास्तव में किसी से उनको बाधा न पहुँच सके' जैसे मछियारा पानी में जाल डाल कर १-५ ‘Ahinsa and Virta' of contributions of Jains in Vol. 1. ६. शङ्का भी, साध्वसं भीतिर्भयमेकाभिधाश्रमी । तस्य निष्कान्तितो जातो भावो निःशंकितोऽर्थतः ॥ ३८२॥ ७. अत्रोत्तरं कुदृष्टियैः स सप्तभिर्भयैर्युतः । नापि स्पृष्टः सुदृष्टिय स सप्तभिर्भयै मैनाक् ॥ ४६४॥ ८. इसी ग्रन्थ का पृ० ७६ । ६. व्युत्थानावस्थानां रागादीनां वशप्रवृत्तायाम् । म्रियतां जीवो मा वाधावत्युग्रे ध्रुवं हिंसा ॥४६॥ -- पञ्चाध्यायी - पंचाध्यायी -पुरुषार्थं सिद्ध्युपाय [ ४१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy