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________________ हुये तो कर्मरूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले मोक्षगामी हुए । इनके बाद सुभौम नाम के आठवें चक्रवर्ती अयोध्या नगरी में हुए । १६. श्री मल्लिनाथ जी मिथिलापुरी के सम्राट् कुम्भनृप के पुत्र थे । सातवें नारायण दूत, प्रीतनारायण बलिन्द, बलभद्र, नन्दीमित्र और नौवें चक्रवर्ती पद्म भी इन्हीं के तीर्थकाल में हुए हैं। २० श्री मुनिसुव्रतनाथ जी राजगृह के स्वामी हरिवंशी सम्राट् सुमित्र के पुत्र थे । आठवें नारायण लक्ष्मण जी, प्रीतनारायण रावण, बलभद्र, श्री रामचन्द्र जी, अठारवें कामदेव हनुमान जी और दशवें चक्रवर्ती हरिषेण जी भी इन्हीं के तीर्थकाल हुए हैं । में हुए थे 1 २१. श्री नेमिनाथ जी मिथिलापुरी के राज। विजयरथ के पुत्र थे । ग्यारहवें चक्रकर्ती जयसेन इनक समय में २२ श्री अरिष्टनेमि जी द्वारिका जी के यदुवंशी नरेश समुद्रविजय के पुत्र थे, जो श्रीकृष्ण जी के पिता श्री वसुदेव जी के बड़े भाई थे' । नववें नारायण श्रीकृष्ण जी, प्रतिनारायण जरासिन्धु और बलभद्र बलदेव जी इन्हीं के जीवनकाल में हुए हैं । यह इतने पूजनीय हुए हैं कि ऋग्वेद में इनको संसार का कल्याण करने वाले' कर्मरूपी शत्रुओं को जीतने वाले धर्मरूपी रथ को चलाने वाले और स्तुतियोग्य, यजुर्वेद में आत्मस्वरूप, सर्वज्ञ", 3 1, Prof. Dr. H. S Bhattacharya: Lord Arishta Nemi (J. M. Mandal Delhi) P. 3 २-५. तंवा रथं वयमद्याहुवेमस्तो मरश्चिना सुविताय नव्यं । अरिष्टनेमिः परिद्यामियानं विद्याभेषं वृजनं जीरदानम् ॥ — ऋग्वेद ऋ० २ ० ४ व २४ । [ ४१५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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